

भारतीय संस्कृति पर निबंध (India Culture Essay in Hindi)

पूरे विश्व में भारत अपनी संस्कृति और परंपरा के लिये प्रसिद्ध देश है। ये विभिन्न संस्कृति और परंपरा की भूमि है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व अच्छे शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि हैं। अब जबकि हरेक की जीवन शैली आधुनिक हो रही है, भारतीय लोग आज भी अपनी परंपरा और मूल्यों को बनाए हुए हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के लोगों के बीच की घनिष्ठता ने एक अनोखा देश, ‘भारत’ बनाया है। अपनी खुद की संस्कृति और परंपरा का अनुसरण करने के द्वारा भारत में लोग शांतिपूर्णं तरीके से रहते हैं।
भारतीय संस्कृति पर छोटे तथा बड़े निबंध (Long and Short Essay on India Culture, Bhartiya Sanskriti par Nibandh Hindi mein)
निबंध 1 (300 शब्द) – संस्कृतियों से समृद्ध देश: भारत.
भारत संस्कृतियों से समृद्ध देश है, जहाँ अलग-अलग संस्कृतियों के लोग रहते हैं। हम भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान और आदर करते हैं। संस्कृति सबकुछ है जैसे दूसरों के साथ व्यवहार करने का तरीका, विचार, प्रथा जिसका हम अनुसरण करते हैं।कला, हस्तशिल्प, धर्म, खाने की आदत,त्यौहार, मेले, संगीत और नृत्य आदि सभी संस्कृति का हिस्सा है।भारतीय संस्कृति विभिन्नता में एकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।
भारत की विभिन्न संस्कृतियाँ
भाषा , धर्म और पंथ – भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी है हालाँकि विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लगभग 22 आधिकारिकभाषाएँ और 400 दूसरी भाषाएँ प्रतिदिन बोली जाती हैं। इतिहास के अनुसार, हिन्दू और बुद्ध धर्म जैसे धर्मों की जन्मस्थली के रुप में भारत को पहचाना जाता है। भारत की अधिकांशजनसंख्या हिन्दू धर्म से संबंध रखती है। हिन्दू धर्म की दूसरी विविधता शैव, शक्त्य, वैष्णव और स्मार्ता है।
वेशभूषा और खानपान – भारत अधिक जनसंख्या के साथ एक बड़ा देश है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग अपनी अनोखी संस्कृति के साथ एकसाथ रहते हैं। देश के कुछ मुख्य धर्म हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन और यहूदी हैं। भारत एक ऐसा देश है जहाँ देश के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न – भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। आमतौर पर यहाँ के लोग वेशभूषा, सामाजिक मान्यताओं, प्रथा और खाने की आदतों में भिन्न होते हैं।
पर्व और जयंतियाँ – विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों सहित हम कुछ राष्ट्रीय उत्सवों को एकसाथ मनाते हैं जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयंती आदि। बिना एक-दूसरे में टाँग अड़ाये बेहद खुशी और उत्साह के साथ देश के विभिन्न भागों में विभिन्न धर्मों के लोग अपने त्योंहारों को मनाते हैं।
कुछ कार्यक्रम जैसे बुद्ध पूर्णिमा, महावीर जयंती, गुरु पर्व आदि कई धर्मों के लोगों द्वारा एकसाथ मनाया जाता है। भारत अपने विभिन्न सांस्कृतिक नृत्यों जैसे शास्त्रीय (भरत नाट्यम, कथक, कथक कली, कुच्ची पुड़ी) और अपने क्षेत्रों के लोक नृत्यों के अनुसार बहुत प्रसिद्ध है। पंजाबी भाँगड़ा करते हैं, गुजराती गरबा करते हैं, राजस्थानी घुमर करते हैं, आसामी बिहू करते हैं। इसलिए भारत दुनियाभर में अपने विभिन्न संस्कृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
निबंध 2 (250 शब्द) – भारतीय संस्कृति: विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है जो लगभग 5,000 हजार वर्ष पुरानी है। विश्व की पहली और महान संस्कृति के रुप में भारतीय संस्कृति को माना जाता है। “विविधता में एकता” का कथन यहाँ पर आम है अर्थात् भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा के साथ शांतिपूर्णं तरीके से एक साथ रहते हैं। विभिन्न धर्मों के लोगों की अपनी भाषा, खाने की आदत, रीति-रिवाज़ आदि अलग हैं फिर भी वो एकता के साथ रहते हैं।
पूरे विश्व भर में भारतीय संस्कृति बहुत प्रसिद्ध है। विश्व के बहुत रोचक और प्राचीन संस्कृति के रुप में इसको देखा जाता है। अलग-अलग धर्मों, परंपराओं, भोजन, वस्त्र आदि से संबंधित लोग यहाँ रहते हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के रह रहे लोग यहाँ सामाजिक रुप से स्वतंत्र हैं इसी वजह से धर्मों की विविधता में एकता के मजबूत संबंधों का यहाँ अस्तित्व है।
अलग परिवारों, जातियों, उप-जातियों और धार्मिक समुदाय में जन्म लेने वाले लोग एकसाथ शांतिपूर्वक एक समूह में रहते हैं। यहाँ लोगों का सामाजिक जुड़ाव लंबे समय तक रहता है। अपनी तारतम्यता, और सम्मान की भावना, इज़्ज़त और एक-दूसरे के अधिकार के बारे में अच्छी भावना रखते हैं। अपनी संस्कृति के लिये भारतीय लोग अत्यधिक समर्पित रहते हैं और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने के लिये अच्छे सभ्याचार को जानते हैं।
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों की अपनी संस्कृति और परंपरा होती है। उनका अपने त्योंहार और मेले होते हैं जिसे वो अपने तरीके से मनाते हैं। लोग विभिन्न भोजन संस्कृति जैसे पोहा, बूंदा, ब्रेड ऑमलेट, केले का चिप्स, आलू का पापड़, मुरमुरे, उपमा, डोसा, इडली, चाईनीज़ आदि का अनुकरण करते हैं। दूसरे धर्मों के लोगों की कुछ अलग भोजन संस्कृति होती है जैसे सेवईयाँ, बिरयानी, तंदुरी, मठ्ठी आदि।

निबंध 3 (350 शब्द) – सांस्कृतिक मूल्य और परंपरा से लगाव
समृद्ध संस्कृति और विरासत की भूमि है भारत जहाँ लोगों में इंसानियत, उदारता, एकता, धर्मनिर्पेक्षता, मजबूत सामाजिक संबंध और दूसरे अच्छे गुण हैं। दूसरे धर्मों के लोगों द्वारा ढ़ेर सारी क्रोधी क्रियाओं के बावजूद भी भारतीय हमेशा अपने दयालु और सौम्य व्यवहार के लिये जाने जाते हैं। अपने सिद्धांतों और विचारों में बिना किसी बदलाव के अपनी सेवा-भाव और शांत स्वाभाव के लिये भारतीयों की हमेशा तारीफ होती है। भारत महान किंवदंतियों की भूमि है जहाँ महान लोगों ने जन्म लिया और ढ़ेर सारे सामाजिक कार्य किये।
वो आज भी हमारे लिये प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं। भारत महात्मा गाँधी की भूमि है जहाँ उन्होंने लोगों में अहिंसा की संस्कृति पल्लवित की है। उन्होंने हमेशा हम लोगों से कहा कि अगर तुम वाकई बदलाव लाना चाहते हो तो दूसरों से लड़ाई करने के बजाय उनसे विनम्रता से बात करो। उन्होंने कहा कि इस धरती पर सभी लोग प्यार, आदर सम्मान और परवाह के भूखे हैं; अगर तुम उनकों सबकुछ दोगे तो निश्चित ही वो तुम्हारा अनुसरण करेंगे।
गाँधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे और अंग्रेजी शासन से भारत के लिये आजादी पाने में एक दिन वो सफल हुए। उन्होंने भारतीयों से कहा कि अपनी एकता और विनम्रता की शक्ति दिखाओ, तब बदलाव देखो। भारत पुरुष और स्त्री, जाति और धर्म आदि का देश नहीं है बल्कि ये एकता का देश है जहाँ सभी जाति और संप्रदाय के लोग एक साथ रहते हैं।
भारत में लोग आधुनिक है और समय के साथ बदलती आधुनिकता का अनुसरण करते हैं फिर भी वो अपनी सांस्कृतिक मूल्यों और परंपरा से जुड़े हुए हैं। भारत एक आध्यात्मिक देश है जहाँ लोग आध्यात्म में भरोसा करते हैं। यहाँ के लोग योग, ध्यान और दूसरे आध्यात्मिक क्रियाओं में विश्वास रखते हैं। भारत की सामाजिक व्यवस्था महान है जहाँ लोग आज भी संयुक्त परिवार के रुप में अपने दादा-दादी, चाचा, ताऊ, चचेरे भाई-बहन आदि के साथ रहते हैं। इसलिये यहाँ के लोग जन्म से ही अपनी संस्कृति और परंपरा के बारे में सीखते हैं।
निबंध 4 (400 शब्द) – भारतीय संस्कृति: अतिथि देवो भव:
भारत की संस्कृति में सबकुछ है जैसे विरासत के विचार, लोगों की जीवन शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें, परवरिश, विनम्रता, ज्ञान आदि। भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है जहाँ लोग अपनी पुरानी मानवता की संस्कृति और परवरिश का अनुकरण करते हैं। संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, सौम्यता से चीजों पर प्रतिक्रिया करने का, मूल्यों के प्रति हमारी समझ का, न्याय, सिद्धांत और मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी संस्कृति और मान्यताओं को नयी पीढ़ी को सौंपते हैं।
इसलिये सभी बच्चे यहाँ पर अच्छे से व्यवहार करते हैं क्योंकि उनको ये संस्कृति और परंपराएँ पहले से ही उनके माता-पिता और दादा –दादी से मिली होती हैं। हमलोग यहाँ सभी चीजों में भारतीय संस्कृति की झलक देख सकते हैं जैसे नृत्य, संगीत, कला, व्यवहार, सामाजिक नियम, भोजन, हस्तशिल्प, वेशभूषा आदि। भारत एक बड़ा पिघलने वाला बर्तन है जिसके पास विभिन्न मान्यताएँ और व्यवहार है जो कि अलग-अलग संस्कृतियों को यहाँ जन्म देता है।
लगभग पाँच हजार वर्ष पहले से ही विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति की अपनी जड़ है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ वेदों से हिन्दू धर्म का आरंभ हुआ है। हिन्दू धर्म के सभी पवित्र धर्मग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये है। ये भी माना जाता है कि जैन धर्म का आरंभ प्राचीन समय से है और इसका अस्तित्व सिन्धु घाटी में था। बुद्ध एक दूसरा धर्म है जिसकी उत्पत्ति भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षा के बाद अपने देश में हुयी है। ईसाई धर्म को यहाँ अंग्रेज और फ्रांसीसी लेकर आये जिन्होंने लगभग 200 वर्ष के लंबे समय तक यहाँ पर राज किया। इस तरीके से विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति यहाँ प्राचीन समय से या किसी तरह से यहाँ लायी गयी है। हालाँकि, अपने रीति-रिवाज़ और मान्यताओं को बिना प्रभावित किये सभी धर्मों के लोग शांतिपूर्ण तरीके से एकसाथ रहते हैं।
कई सारे युग आये और गये लेकिन कोई भी इतना प्रभावशाली नहीं हुआ कि वो हमारी वास्तविक संस्कृति को बदल सके। नाभिरज्जु के द्वारा पुरानी पीढ़ी की संस्कृति नयी पीढ़ी से आज भी जुड़ी हुयी है। हमारी राष्ट्रीय संस्कृति हमेशा हमें अच्छा व्यवहार करना, बड़ों की इज़्ज़त करना, मजबूर लोगों की मदद करना और गरीब और जरुरत मंद लोगों की मदद करना सिखाती है।
ये हमारी धार्मिक संस्कृति है कि हम व्रत रखे, पूजा करें, गंगा जल अर्पण करें, सूर्य नमस्कार करें, परिवार के बड़ों सदस्यों का पैर छुएँ, रोज ध्यान और योग करें तथा भूखे और अक्षम लोगों को अन्न-जल दें। हमारे राष्ट्र की ये महान संस्कृति है कि हम बहुत खुशी के साथ अपने घर आये मेहमानों की सेवा करते है क्योंकि मेहमान भगवान का रुप होता है इसी वजह से भारत में “अतिथि देवो भव:” का कथन बेहद प्रसिद्ध है। हमारी संस्कृति की मूल जड़ इंसानियत और आध्यात्मिक कार्य है।
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उत्तर- संगीत रत्नाकर ग्रंथ से।
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भारतीय संस्कृति पर निबंध – Essay on Indian Culture in Hindi
Essay on Indian Culture in Hindi
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन एवं महान संस्कृति है जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। भारतीय संस्कृति सार्वधिक संपन्न और समृद्ध है और अनेकता में एकता ही इसकी मूल पहचान है।
भारत ही एक ऐसा देश हैं जहां एक से ज्यादा जाति, धर्म, समुदाय, लिंग, पंथ आदि के लोग मिलजुल कर रहते हैं और सभी अपनी-अपनी परंपरा और रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
भारत संस्कृति का विज्ञान, राजनीति, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में हमेशा ही एक अलग स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति में मानवीय मूल्यों, नैतिक मूल्यों, शिष्टाचार, आदर, गुरुओं का सम्मान, अतिथियों का सम्मान, राजनीति, दर्शन, धर्म, समाज, परंपराएं, रीति-रिवाज, सौंदर्य़ बोध, आध्यात्मिकता, आदि का बेहद खूबसूरत तरीके से समावेश किया गया है।
भारतीय संस्कृति के महत्व को आज की पीढ़ी को समझाने के लिए कई बार स्कूल-कॉलेजों में आयोजित परीक्षाएं अथवा निबंध लेखन प्रतियोगताओं में भारतीय संस्कृति के विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट में भारतीय संस्कृति पर हैडिंग के साथ निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –

प्रस्तावना –
भारत विविधताओं का देश है, जहां अलग-अलग धर्म, जाति, पंथ, लिंग के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की मूल पहचान है। भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति होने के बाबजूद भी आज अपने नैतिक मूल्यों और परंपराओं को बनाए हुए है।
प्रेम, धर्म, राजनीति, दर्शन, भाईचारा, सम्मान, आदर, परोपकार, भलाई, मानवीयता, आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं हैं। भारत में रहने वाले सभी लोग सभी अपनी संस्कृति का आदर करते हैं और इसकी गरिमा को बनाए रखने में अपना सहयोग करते हैं।
संस्कृति की परिभाषा एवं संस्कृति शब्द का अर्थ – Meaning of Culture
किसी देश, जाति, समुदाय आदि की पहचान उसकी संस्कृति से ही होती है। संस्कृति, देश के सभी जाति, धर्म, समुदाय को उसके संस्कारों का बोध करवाती है।
जिससे उन्हें अपने जीवन के आदर्शों और नैतिक मूल्यों पर चलने की प्रेरणा मिलती है और अच्छी भावनाओं का विकास होता है। विरासत में मिले विचार, कला, शिल्प, वस्तु आदि ही किसी देश की मूल संस्कृति कहलती है।
संस्कृति शब्द का मुख्य रुप से संस्कार से बना हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सुधारने अथवा शुद्धि करने वाली या फिर परिष्कार करने वाली। वहीं चार वेदो में से एक यजुर्वेद में संस्कृति को सृष्टि माना गया है, जो समस्त विश्व में वरण करने योग्य होती है।
जीवन को सम्पन्न करने के लिए मूल्यों, मान्यताओं एवं स्थापनाओं का समूह ही संस्कृति कहलाता है, सीधे शब्दों में संस्कृति का सीधा संबंध मनुष्य के जीवन के मूल्यों से होता है।
सभ्यता एवं संस्कृति:
सभ्यता और संस्कृति को भले ही आज एक-दूसरे का पर्याय कहा जाता हो, लेकिन दोनों एक-दूसरे से काफी अलग-अलग होती हैं। सभ्यता का सबंध मानव जीवन के बाहरी ढंग अथवा भौतिक विकास से होता है, जैसे उसका रहन-सहन, खान-पान, भाषा आदि। संस्कृति का सीधा अभिप्राय मनुष्य की सोच, चिंतन, अध्यात्म, विचारधारा आदि से होता है।
संस्कृति का क्षेत्र काफी व्यापक और गहन होता है। इसके तहत आन्तरिक गुण जैसे विन्रमता, सुशीलता, सहानुभूति, सहृदयता, एवं सज्जनता आदि आते हैं जो इसके मूल्य व आदर्श होते हैं।
हालांकि, सभ्यता एवं संस्कृति का आपस में काफी घनिष्ठ संबंध होता है, क्योंकि मनुष्य अपने विचारों से ही किसी वस्तु को बनाता है।
विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के रुप में भारतीय संस्कृति:
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है, लेकिन आधुनिकता और पाश्चात्य शैली अपनाने के बाबजूद आज भी भारतीय संस्कृति ने अपने मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को बना कर रखा है।
इतिहासकारों के मुताबिक भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीनतम होने का प्रमाण मध्यप्रदेश के भीमबेटका में मिले शैलचित्र एवं नृवंशीय व पुरातत्वीय अवशेषों और नर्मदा घाटी में की गई खुदाई से सिद्ध हुआ है।
इसके अलावा सिंधु घाटी की सभ्यता में किए गए कुछ उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि आज से करीब 5 हजार साल पहले भारतीय संस्कृति का उदगम हो चुका था। यह नहीं वेदों में भारतीय संस्कृति का उल्लेख भी इसकी प्राचीनता का एक बड़ा प्रमाण है।
भारतीय संस्कृति क्यों हैं विश्व की समृद्ध संस्कृति और इसकी विशिष्टताएं:
भारतीय संस्कृति में कई अलग-अलग धर्म, समुदाय, जाति पंथ आदि के लोगों के रहने के बाद भी इसमें विविधता में एकता है। भारतीय संस्कृति के आदर्श एवं मूल्य ही इसे विश्व में एक अलग सम्मान दिलवाती है और समृद्ध बनाती है। भारतीय संस्कृति की कुछ प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई हैं –
भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल रुप-स्वरूप में जीवित है:
भारतीय संस्कृति की निरंतरता ही इसकी प्रमुख विशेषता है, विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति होने के बाबजूद आज भी यह अपने मूल रुप में जीवित है। वहीं आधुनिकता के इस युग में आज भी कई धार्मिक परंपराएं, रीति-रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान कई हजार सालों के बाद भी वैसे ही चले आ रहे हैं। धर्मों और वेदों में लोगों की अनूठी आस्था आज भी भारतीय संस्कृति की पहचान को बरकरार रखे हुए है।
सहनशीलता एवं सहिष्णुता:
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत सहिष्णुता और सहनशीलता है। भारतीयों के साथ अंग्रजी शासकों एवं आक्रमणकारियों द्धारा काफी क्रूर व्यवहार किया गया और उन पर असहनीय जुर्म ढाह गए, लेकिन भारतीयों ने देश में शांति बनाए रखने के लिए कई हमलावरों के अत्याचारों को सहन किया।
वहीं सहनशीलता का गुण भारतीयों को उसकी संस्कृति से विरासत में मिला है। वहीं कई महापुरुषों ने भी सहिष्णुता की शिक्षा दी है।
आध्यात्मिकता, भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता:
भारतीय संस्कृति, का मूल आधार आध्यात्मिकता है, जो कि मूल रुप से धर्म, कर्म एवं ईश्वरीय विश्वास से जुड़ी हुई है। भारतीय संस्कृति में रह रहे अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को अपने परमेश्वर पर अटूट आस्था एवं विश्वास है।
भारतीय संस्कृति में कर्म करने की महत्वता:
भारतीय संस्कृति में कर्म करने पर बल दिया गया है। यहां कर्म को ही पूजा माना गया है। वहीं कर्म करने वाला पुरुष ही अपने लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर पाता है और अपने जीवन में सफल होता है।
आपसी प्रेम एवं भाईचारा:
भारतीय संस्कृति में लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति प्रेम, परोपकार, सद्भाव एवं भलाई की भावना निहित है, जो इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।
अनेकता में एकता – Anekta Mein Ekta
भारत में अलग-अलग जाति, धर्म, लिंग, पंथ, समुदाय आदि के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन, बोल-चाल एवं खान-पान में काफी विविधता है, लेकिन फिर भी सभी भारतीय आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहते हैं, इसलिए अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की मूल पहचान है।
नैतिक एवं मानवीय मूल्यों का महत्व:
भारत संस्कृति के तहत नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी गई है। जिसमें विचार, शिष्टाचार, आदर्श, दर्शन, राजनीति, धर्म आदि शामिल हैं।
भारतीयों के संस्कार हैं इसकी विशेषता:
भारतीय मूल के व्यक्ति की शिष्टता एवं अच्छे संस्कार जैसे बड़ों का आदर करना, अनुशासन में रहना, परोपकार एवं भलाई करना, जीवों के प्रति दया का भाव रखना एवं अच्छे कर्म करना ही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत है।
शिक्षा का महत्व – Shiksha Ka Mahatva
भारतीय संस्कृति में शिक्षा को खास महत्व दिया गया है। यहां शिक्षित व्यक्ति को ही सम्मान दिया जाता है, जबकि अशिक्षित व्यक्ति का सही रुप से मानसिक, नैतिक एवं शारीरिक विकास नहीं होने की वजह से उसे समाज में उपेक्षित किया जाता है वहीं अशिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में दर-दर की ठोकरें खाता है।
राष्ट्रीयता की भावना:
भारतीय संस्कृति में लोगों के अंदर राष्ट्रीय एकता की भावना निहित है। राष्ट्र पर जब भी कोई संकट आया है, तब-तब भारतीयों ने एक होकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है।
अतिथियों का सम्मान:
भारतीय संस्कृति में अतिथियों को भगवान का रुप माना गया है। हमारे देश में आने वाले मेहमानों का खास तरीके से स्वागत कर उनको सम्मान दिया जाता है। वहीं अगर कोई दुश्मन भी मेहमान बनकर आता है तो उसका स्वागत सत्कार करना प्रत्येक भारतीय अपना फर्ज समझता है।
गुरुओं का विशिष्ट स्थान:
भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से ही गुरुओं को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरु ही मनुष्य को सही कर्तव्यपथ पर चलने के योग्य बनाता है और उसे समस्त संसार का बोध करवाता है।
मनुष्य के अंदर जो भी गुण समाहित होते हैं, वो उसे उसकी संस्कृति से विरासत में मिलते हैं और उसे एक सामाजिक एवं आदर्श प्राणी बनाने में मद्द करते हैं। वहीं मानव कल्याण एवं विकास के लिए सभी सहायक संपूर्ण ज्ञानात्मक, विचारात्मक, एवं क्रियात्मक गुण उसकी संस्कृति कहलाते हैं।
भारतीय संस्कृति इसके नैतिक मूल्यों, आदर्शों एवं अपनी तमाम विशिष्टताओं की वजह से पूरी दुनिया में विख्यात है और दुनिया की सबसे समृद्ध संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है जहां सभी लोग एक परिवार की तरह रहते हैं।
- Essay in Hindi
3 thoughts on “भारतीय संस्कृति पर निबंध – Essay on Indian Culture in Hindi”
Thanks for the help and I hope it helps others also and they can understand it easily….for their exams
thank you so much this essay is very useful for me I score 30/30 in my exam
boht sundar essay thank you
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Indian culture essay in hindi भारतीय संस्कृति पर निबंध.
Write an essay on Indian culture in Hindi language. भारतीय संस्कृति। What is Indian culture in Hindi/ भारतीय संस्कृति? What are the effects of western culture on Indian youth essays in Hindi. Now you can write long and short essay on Indian culture in Hindi in our own words. We have added an essay on Indian culture in Hindi 300 and 1000 words. You may get questions like Bhartiya Sanskriti essay in Hindi, Bhartiya Sanskriti par Nibandh or Bharat ki Sabhyata aur Sankriti in Hindi. If you need we will add Bhartiya Sanskriti in Hindi pdf in this article. You can write a paragraph on Indian culture and give a speech on Indian culture in Hindi.

Essay on Indian Culture In Hindi 300 Words
भारत की संस्कृति बहुत सारी चीजों से मिल जुलकर बनी है जैसे की विरासत के विचार, लोगों की जीवन शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें अदि। भारत की संस्कृति, भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान आगे बढ़ी और चलते-चलते वैदिक युग में विकसित हुई। भारत विश्व के उन प्राचीन देशो में से एक है जिसमे बौद्ध धर्म और स्वर्ण युग की शुरुआत हुई, जिसमे खुद की एक अलग प्राचीन विश्व विरासत शामिल है।
संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, प्रतिक्रिया, मूल्यों को समझना, मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। दुनिआ भर के अलग अलग देशो की अपनी भिन-भिन संस्कृति है, और सभी को अपनी संस्कृति पर नाज़ है। भारत की संस्कृति में पड़ोसी देशों के रीति-रिवाज, परंपरा और विचारों का अभी बहुत समावेश है। भारत हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य कई धर्मों का जनक है। दिन भर के सभी कार्यो में अपने देश के संस्कृति के झलक मिल जाती है जैसे कि नृत्य, संगीत, कला, व्यवहार, सामाजिक नियम, भोजन, हस्तशिल्प, वेशभूषा आदि।
विश्व कि प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक होने के कारन भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में बहुत महत्व रखती है। भारत कि संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता और तीसरी जगद्गुरु होना है।
पुराणी पीढ़ी के लोग नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति और मान्यताओं को सौंपते है, जो खुद बूढ़े होने पर आने वाली पीढ़ी को सौंप देते है। इसी तरह ये संस्कृति आगे बढ़ती जाती है और विशाल रूप धारण कर लेती है। इसी संस्कृति की वजह से ही सभी बच्चे अच्छे वे व्यवहार करते ही क्योकि ये संस्कृति उन्हें उनके दादा-दादी और नाना-नानी से मिली। ये हमारे भारत देश कि ही संस्कृति है जहा घर ए मेहमान कि सेवा की जाती है और मेहमान को भगवन का दर्जा दिया जाता है। इसी वजह से भारत में “अतिथि देवो भव:” का कथन बेहद प्रसिद्ध है।
Essay on Indian Culture In Hindi 1000 Words
संस्कृति-सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम है जिसे कोई समाज विरासत के रूप में प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है, एक ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लम्बी परम्परा होती है।
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है, किंतु यह कब और कैसे विकसित हुई, यह कहना कठिन है। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। भारतीय संस्कृति के मूलरूप का परिचय हमें वेदों से मिलता है। वेदों की रचना ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता का विवरण भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। इसका इतना लंबा और अखंड इतिहास इसे महत्त्वपूर्ण बनाता है। मिस्र, यूनान और रोम आदि देशों की संस्कृतियां आज केवल इतिहास बन कर सामने हैं, जबकि भारतीय संस्कृति एक लम्बी ऐतिहासिक परम्परा के साथ आज भी निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। महाकवि इकबाल के शब्दों में - यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।
आखिर यह बात क्या है ? भारत में समय-समय पर ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मंगोल आदि जातियाँ आईं लेकिन भारतीय संस्कृति ने अपने विकास की प्रक्रिया में इन सभी को आत्मसात कर लिया और उनके अच्छे गुणों को ग्रहण करके उन्हें अपने रंग-रूप में ऐसा ढाला कि वे आज भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। भारत ने वे सभी विचार, आचार-व्यवहार स्वीकार कर लिए जो उसकी दृष्टि में समाज के लिए उपयोगी थे। अच्छे विचारों को ग्रहण करने में भारतीय संस्कृति ने कभी परहेज नहीं किया। विविध संस्कृतियों को पचाकर उन्हें एक सामाजिक स्वरूप दे देना ही भारतीय संस्कृति के कालजयी होने का कारण है।’ अनेकता में एकता’ ही भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है। कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत को ‘महामानवता का सागर’ कहा है। यह सचमुच महासागर है। यह – जाति, धर्म, भाषा-साहित्य, कला-कौशल आदि की अनेक सरिताओं द्वारा समृद्ध महामानवता का महासागर है। संसार के सभी प्रमुख धर्म भारत में प्रचलित हैं। सनातन धर्म (हिंदू), जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, इस्लाम, सिख सभी धर्मों को मानने वाले लोग यहां रहते हैं। भाषा की दृष्टि से यहां लगभग 150 भाषाएं बोली जाती हैं। यहाँ ‘ढाई कोस पर बोली बदले’ वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है। संसार के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के रूप में साहित्य की जो प्रथम धारा यहीं फूटी थी, वही समय के साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, बंगला, तथा तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि के माध्यमों से विकसित हुई और फ़ारसी तथा अंग्रेजी साहित्य ने भी उसे ग्रहण किया।
नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी यही समन्वय देखने को मिलता है। भारत नाट्यम, ओडिसी, कुच्चिपुड़ि, कथकली, मणिपुरी, कत्थक नृत्य शैली में मुगल दरबार की संस्कृति का बड़ा सुंदर रूप देखने को मिलता है। भारतीय संगीत में भी हमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। सामगान से उत्पन्न भारतीय संगीत के विकास के पीछे भी समन्वय की एक लम्बी परम्परा है। यह लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों को अपने में समेटे हुए है। हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दोनों में ही अनेक लोकधुनों ने राग-रागिनियों के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है। ईरानी संगीत का प्रभाव आज भी अनेक राग-रागिनियों और वाद्य यंत्रों पर स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुस्तानी संगीत की समद्धि में तो अनेक मुस्लिम संगीतकारों का योगदान रहा है।
साहित्य और संगीत के समान भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला में भी विविधता में एकता दिखाई देती है। इससे भारत में आई विभिन्न जातियों की कलाशैलियों के पूरे इतिहास की झलक देखने को मिलती है। इसमें एक ओर तो शक, कुषाण, गांधार, ईरानी, यूनानी शैलियों से प्रभावित धाराएँ आ जुड़ी हैं तो दूसरी ओर इस्लामी और ईसाई सभ्यता से प्रभावित धाराएँ, किंतु ये सब धाराएँ मिलकर भारतीय कला को एक विशिष्ट रूप प्रदान करती हैं।
भारत पर्वो एवं उत्सवों का देश है। हमारे पर्व एवं त्योहार अनेकता में हमारी सांस्कृतिक एकता को दर्शाते हैं। दीपावली, दशहरा, बैशाखी, पोंगल, ओणम, मकर संक्रांति, गुरुपर्व, बिहू, ईद-उल-फ़ितर, ईद-उल-जुहा, क्रिसमस, नवरोज आदि में भारतीय संस्कृति की इसी एकात्मकता के दर्शन होते हैं। इन सभी पर्यों एवं त्योहारों ने हमारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया हुआ है। ये सभी भारतीय संस्कृति की एकता जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं और हमें ये बार-बार अनुभव कराते हैं कि हमारी परम्परा और हमारी संस्कृति मूलत: एक है। देश के विभिन्न भागों में बसे लोग भाषा, धर्म, वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़ आदि की दृष्टि से भले ही ऊपरी तौर पर एक दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं, किंतु इन विभिन्नताओं के बावजूद भारत एक सांस्कृतिक इकाई है।
वस्तुत: अनेकरूपता ही किसी राष्ट्र की जीवंतता, संपन्नता तथा समृद्धि का द्योतक है। भारतीय संस्कृति की समृद्धि तथा गरिमा इसी अनेकता का परिणाम है। इस अनेकता ने ही धर्म, जाति, वर्ग, काल की सीमाओं से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को एकात्मकता प्रदान की है और महामानवता के एक सागर के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
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Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध
Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध: भारत में एक समृद्ध संस्कृति है और यह हमारी पहचान बन गई है। धर्म, कला, बौद्धिक उपलब्धियों या प्रदर्शनकारी कला में हो, इसने हमें एक रंगीन, समृद्ध और विविध राष्ट्र बना दिया है। भारतीय संस्कृति और परंपरा निबंध भारत में पीछा जीवंत संस्कृति और परंपराओं को एक दिशानिर्देश है।
भारत कई आक्रमणों का घर था और इस तरह यह केवल वर्तमान विविधता में जुड़ गया। आज, भारत एक शक्तिशाली और बहु-सुसंस्कृत समाज के रूप में खड़ा है क्योंकि इसने कई संस्कृतियों को अवशोषित किया है और आगे बढ़ा है। यहां के लोगों ने विभिन्न धर्मों , परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन किया है।
Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध
हालांकि लोग आज आधुनिक हो रहे हैं, नैतिक मूल्यों पर पकड़ रखते हैं और रीति-रिवाजों के अनुसार त्योहार मनाते हैं। इसलिए, हम अभी भी रामायण और महाभारत से महाकाव्य सीख रहे हैं और सीख रहे हैं। इसके अलावा, लोग अभी भी गुरुद्वारों, मंदिरों, चर्चों, और मस्जिदों में घूमते हैं।

भारत में संस्कृति लोगों के रहन-सहन, संस्कारों, मूल्यों, मान्यताओं, आदतों, देखभाल, ज्ञान आदि से सब कुछ है। इसके अलावा, भारत को सबसे पुरानी सभ्यता माना जाता है जहां लोग अभी भी देखभाल और मानवता की अपनी पुरानी आदतों का पालन करते हैं।
इसके अतिरिक्त, संस्कृति एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, हम कितनी आसानी से विभिन्न चीजों पर प्रतिक्रिया करते हैं, नैतिकता, मूल्यों और विश्वासों के बारे में हमारी समझ।
पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी मान्यताओं और संस्कृतियों को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। इस प्रकार, हर बच्चा जो दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, वह पहले से ही दादा-दादी और माता-पिता से उनकी संस्कृति के बारे में जान चुका होता है।
इसके अलावा, यहां हम फैशन , संगीत , नृत्य , सामाजिक मानदंड, खाद्य पदार्थ आदि जैसे हर चीज में संस्कृति देख सकते हैं । इस प्रकार, भारत व्यवहार और विश्वास रखने के लिए एक बड़ा पिघलने वाला बर्तन है जिसने विभिन्न संस्कृतियों को जन्म दिया।
भारतीय संस्कृति और धर्म
ऐसे कई धर्म हैं जिन्होंने अपनी उत्पत्ति सदियों पुरानी पद्धतियों में पाई है जो पाँच हज़ार साल पुराने हैं। इसके अलावा, यह माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई थी।
इस प्रकार, पवित्र माने जाने वाले सभी हिंदू शास्त्रों को संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इसके अलावा, यह माना जाता है कि सिंधु घाटी में जैन धर्म की प्राचीन उत्पत्ति और अस्तित्व है। बौद्ध धर्म दूसरा धर्म है जो गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के माध्यम से देश में उत्पन्न हुआ था।
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कई अलग-अलग युग हैं जो आए हैं और चले गए हैं लेकिन वास्तविक संस्कृति के प्रभाव को बदलने के लिए कोई भी युग बहुत शक्तिशाली नहीं था। तो, युवा पीढ़ियों की संस्कृति अभी भी पुरानी पीढ़ियों से जुड़ी हुई है। साथ ही, हमारी जातीय संस्कृति हमें हमेशा बड़ों का सम्मान करना, अच्छा व्यवहार करना, असहाय लोगों की देखभाल करना और जरूरतमंद और गरीब लोगों की मदद करना सिखाती है।
इसके अतिरिक्त, हमारे देश में एक महान संस्कृति है कि हमें हमेशा देवताओं की तरह अतिथि का स्वागत करना चाहिए। यही कारण है कि हमारे पास ‘अति देवो भव’ जैसी प्रसिद्ध कहावत है। तो, हमारी संस्कृति में मूल जड़ें आध्यात्मिक अभ्यास और मानवता हैं।
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Hindi essay # 1 भारतीय खंस्कृति | indian cultrure.
1. प्रस्तावना ।
2. संस्कृति का अर्थ ।
3. सभ्यता और संस्कृति ।
4. भारतीय संस्कृति और उसकी विशिष्टताएं ।
5. उपसंहार ।
यूनान मिश्र रोमां मिट गये जहां से । कुछ बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी ।।
1. प्रस्तावना:
ADVERTISEMENTS:
किसी देश या समाज के परिष्कार की सुदीर्घ परम्परा होती है । उस परम्परा में प्रचलित उन्नत एवं उदात्त विचारों की भूखला ही किसी देश या समाज की संस्कृति कहलाती है, जो उस देश या समाज के जीवन को गति प्रदान करती है । संस्कृति में किसी देश, कालविशेष के आदर्श व उसकी जीवन पद्धति सम्मिलित होती है.। परम्परा से प्राप्त सभी विचार, शिल्प, वस्तु किसी देश की संस्कृति कहलाती है ।
2. संस्कृति का अर्थ:
संस्कृति शब्द संस्कार ने बना है । शाब्दिक अर्थ में संस्कृति का अर्थ है: सुधारने वाली या परिष्कार करने वाली । यजुर्वेद में संस्कृति को सृष्टि माना गया है । जो विश्व में वरण करने योग्य है, वही संस्कृति है ।
डॉ॰ नगेन्द्र ने लिखा है कि संस्कृति मानव जीवन की वह अवस्था है, जहां उसके प्राकृत राग द्वेषों का परिमार्जन हो जाता है । इस तरह जीवन को परिकृत एवं सम्पन्न करने के लिए मूल्यों, स्थापनाओं और मान्यताओं का समूह संस्कृति है ।
किसी भी देश की संस्कृति अपने आप में समग्र होती है । इससे उसका अत: एवं बाल स्वरूप स्पष्ट होता है । संस्कृति परिवर्तनशील है । यही कारण है कि एक काल के सांस्कृतिक रूपों की तुलना दूसरे काल से तथा दूसरे काल के सांस्कृतिक रूपों की अभिव्यक्तियों की तुलना नहीं करनी चाहिए, न ही एक दूसरे को निकृष्ट एवं श्रेष्ठ बताना चाहिए ।
एक मानव को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन तत्त्वों का योगदान होता है, वही संस्कृति है । निष्कर्ष रूप में मानव कल्याण में सहायक सम्पूर्ण ज्ञानात्मक, क्रियात्मक, विचारात्मक गुण संस्कृति कहलाते हैं । संस्कृति में आदर्शवादिता एवं संक्रमणशीलता होती है ।
3. सभ्यता और संस्कृति:
सभ्यता को शरीर एवं संस्कृति को आत्मा कहा गया है; क्योंकि सभ्यता का अभिप्राय मानव के भौतिक विकास से है जिसके अन्तर्गत किसी परिकृत एवं सभ्य समाज की वे स्थूल वस्तुएं आती हैं, जो बाहर से दिखाई देती हैं, जिसके संचय द्वारा वह औरों से अधिक उन्नत एवं उच्च माना जाता है ।
उदाहरणार्थ, रेल, मोटर, सड़क, वायुयान, सुन्दर वेशभूषा, मोबाइल । संस्कृति के अन्तर्गत वे आन्तरिक गुण होते हैं, जो समाज के मूल्य व आदर्श होते हैं, जैसे-सज्जनता, सहृदयता, सहानुभूति, विनम्रता और सुशीलता । सभ्यता और संस्कृति का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है; क्योंकि जो भौतिक वस्तु मनुष्य बनाता है, वह पहले तो विचारों में जन्म लेती है ।
जब कलाकार चित्र बनाता है, तो वह उसकी संस्कृति होती है । सभ्यता और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं । संखातिविहीन सभ्यता की कल्पना नहीं की जा सकती है । जो सभ्य होगा, वह सुसंस्कृत होगा ही । सभ्यता और संस्कृति का कार्यक्षेत्र मानव समाज है ।
भारतीय संस्कृति गंगा की तरह बहती हुई धारा है, जो क्लवेद से प्रारम्भ होकर समय की भूमि का चक्कर लगाती हुई हम तक पहुंची है । जिस तरह गंगा के उद्गम स्त्रोत से लेकर समुद्र में प्रवेश होने वाली अनेक नदियां एवं धाराएं मिलकर उसमें समाहित हैं, उसी तरह हमारी संस्कृति भी है ।
हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है । अनेक प्रहारों को सहते हुए भी इसने अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखा है । हमारे देश में शक, हूण, यवन, मंगोल, मुगल, अंग्रेज कितनी ही जातियां एवं प्रजातियां आयीं, किन्तु सभी भारतीय संस्कृति में एकाकार हो गयीं ।
डॉ॰ गुलाबराय के विचारों में: ”भारतीय संस्कृति में एक संश्लिष्ट एकता है । इसमें सभी संस्कृतियों का रूप मिलकर गंगा में मिले हुए, नदी-नालों के जी की तरह (गांगेय) पवित्र रूप को प्राप्त करता है । भारतीय संस्कृति की अखण्ड धारा में ऐसी सरिताएं हैं, जिनका अस्तित्व कहीं नहीं दिखाई देता । इतना सम्मिश्रण होते हुए भी वह अपने मौलिक एवं अपरिवर्तित रूप में विद्यमान है ।”
4. भारतीय संस्कृति की विशिष्टताएं:
भारतीय संस्कृति कई विशिष्टताओं से युक्त है । जिन विशिष्टताओं के कारण वह जीवित है, उनमें प्रमुख हैं:
1. आध्यात्मिकता:
आध्यात्म भारतीय संस्कृति का प्राण है । आध्यात्मिकता ने भारतीय संस्कृति के किसी भी अंग को अछूता नहीं छोड़ा है । पुनर्जन्म एवं कर्मफल के सिद्धान्त में जीवन की निरन्तरता में भारतीयों का विश्वास दृढ़ किया है और अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के चार पुराषार्थो को महत्च दिया गया है ।
2. सहिष्णुता की भावना:
भारतीय संस्कृति की महत्पपूर्ण विशेषता है: उसकी सहिष्णुता की भावना । भारतीयों ने अनेक आक्रमणकारियों के अत्याचारों को सहन किया है । भारतीयों को सहिष्णुता की शिक्षा राम, बुद्ध. महावीर, कबीर, नानक, चैतन्य महात्मा गांधी आदि महापुरुषों ने दी है ।
3. कर्मवाद:
भारतीय संस्कृति में सर्वत्र करणीय कर्म करने की प्रेरणा दी गयी है । यहां तो परलोक को ही कर्मलोक कहा गया है । गीता में कर्मण्येवाधिकाररते मां फलेषु कदाचन पर बल दिया गया है । अथर्ववेद में कहा गया है-कर्मण्यता मेरे दायें हाथ में है, तो विजय निश्चित ही मेरे बायें हाथ में होगी ।
4. विश्वबसुत्च की भावना:
भारतीय संस्कृति सारे विश्व को एक कुटुम्ब मानते हुए समस्त प्राणियों के प्रति कल्याण, सुख एवं आरोग्य की कामना करती है । विश्व में किसी प्राणी को दुखी देखना उचित नहीं समझा गया है । सर्वे भद्राणी सुखिन: संतु सर्वे निरामया: । सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुःखमायुयात ।
5. समन्वयवादिता:
भारतीय संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता है समन्वयवादिता । यहां के रुषि, मनीषी, महर्षियों व समाज सुधारकों ने सदैव समन्वयवादिता पर बल दिया है । भारतीय संस्कृति की यह समन्वयवादिता बेजोड़ है । अनेकता में एकता होते हुए भी यहां अद्भुत समन्वय है । भोग में त्याग का समन्वय यहां की विशेषता है ।
6. जाति एवं वर्णाश्रम व्यवस्था:
भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम एवं जाति-व्यवस्था श्रम विभाजन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण थी । यह व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित थी, जन्म पर नहीं । 100 वर्ष के कल्पित जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास के अनुसार बांटा
गया । यह व्यवस्था समाज में सुख-शान्ति व सन्तोष की अभिवृद्धि में सहायक थी ।
7. संस्कार:
भारतीय संस्कृति में संस्कारों को विशेष महत्त्व दिया गया है । ये संस्कार समाज में शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं से सम्बन्धित थे । इन अनुष्ठानों का महत्च व्यक्तियों के मूल्यों, प्रतिमानों एवं आदर्शों को अनुशासित व दीक्षित रखना होता है ।
8. गुरू की महत्ता:
भारतीय संस्कृति में गुरा को महत्त्व देते हुए उसे सिद्धिदाता, कल्याणकर्ता एवं मार्गदर्शक माना गया है । गुरा का अर्थ है: अन्धकार का नाश करने वाला ।
9. शिक्षा को महत्त्व:
भारतीय संस्कृति में शिक्षा को पवित्रतम प्रक्रिया माना गया है, जो बालकों का चारित्रिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक विकास करती है ।
10. राष्ट्रीयता की भावना:
भारतीय संस्कृति में राष्ट्रीयता की भावना को विशेष महत्त्व दिया गया है । जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी कहकर इसकी वन्दना की गयी है ।
11. आशावादिता:
भारतीय संस्कृति आशावादी है । वह निराशा का प्रतिवाद करती है ।
12. स्थायित्व:
यह भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है । यूनान, मिश्र, रोम, बेबीलोनिया की संस्कृति अपनी चरम सीमा पर पहुंचकर नष्ट हो गयी है । भारतीय संस्कृति अनेक झंझावातों को सहकर आज भी जीवित है ।
13. अतिथिदेवोभव:
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देव माना गया है । यदि शत्रु भी अतिथि बनकर आये, तो उसका सत्कार करना चाहिए ।
5. उपसंहार:
संस्कृति का निस्सन्देह मानव-जीवन में विशेष महत्त्व है । संस्कृति हमारा मस्तिष्क है, हमारी आत्मा है । संस्कृति में ही मनुष्य के संस्कार हस्तान्तरित होते हैं । संस्कृति वस्तुत: मानव द्वारा निर्मित आदर्शो और मूल्यों की व्यवस्था है, जो मानव की जीवनशैली में अभिव्यक्ति होती है । सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं ।
भारतीय संस्कृति आज भी अपनी विशेषताओं के कारण विश्वविख्यात है । अपने आदर्शो पर कायम है । समन्वयवादिता इसका गुण है । चाहे धर्म हो या कला या भाषा, भारतीय संस्कृति ने सभी देशी-विदेशी संस्कृतियों को अपने में समाहित कर लिया । जिस तरह समुद्र अपने में विभिन्न नदियों के जल को एकाकार कर लेता है, भारतीय संस्कृति इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है ।
Hindi Essay # 2 भारतीय धर्मों का स्वरूप और उसकी विशेषताएं | The Nature and Characteristics of Indian Religions
2. धर्म क्या है?
3. भारतीय धर्मों का स्वरूप ।
4. उपसंहार ।
भारत एक धर्म प्रधान देश है । यहां की संस्कृति धर्म प्राण रही है । मानव जाति की समस्त मूलभूत अनुभूतियों का सुन्दर स्वरूप है धर्म । धर्म मानव जीवन का अपरिहार्य तत्त्व है । धर्म शब्द में असीम व्यापकत्व है ।
किसी वस्तु का वस्तुतत्त्व ही उसका धर्म है । जैसे-अग्नि का धर्म है जलाना । राजा का धर्म है प्रजा की सेवा करना । धर्म वह तत्त्व है, जो मनुष्य को पशुत्व से देवत्व की ओर ले जाता है ।
भारतीयों ने सदा ही अपने प्रारम्भिक जीवन से धर्म की खोज में अपरिमित आनन्द का अनुभव किया है । इसे मानव जीवन का सार माना गया है । भारतीय समाज में जो प्रमुख धर्म प्रचलित हैं, उनमें प्रमुख हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी एवं यहूदी धर्म ।
2. धर्म क्या है?:
धर्म शब्द धृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है-धारण करना । किसी भी वस्तु का मूल तत्त्व है-उस वस्तु को धारण करना । इसीलिए वही उसका धर्म है । मानव अपने जीवन में गुण और क्षमताओं के अनुरूप आचरण करता है । वही उसका धर्म है । इस प्रकार आत्मा से आत्मा को देखना, आत्मा को आत्मा से जानना ।
आत्मा का आत्मा में स्थित होना ही धर्म है । ज्ञान, दर्शन, आनन्द, शक्ति का योग धर्म है । धर्म का अर्थ है: अज्ञात सत्ता की प्राप्ति । मानव का कल्याण, उचित-अनुचित का विवेक ही धर्म है ।
धर्म के जो प्रमुख लक्षण हैं , उनमें प्रमुख हैं:
1. वेद निर्धारित शास्त्र प्रेरित कर्म ही धर्म है ।
2. कल्याणकारी होना धर्म का प्रधान लक्षण है ।
3. धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है ।
4. दया और दान से इसमें वृद्धि होती है ।
5. क्षमा में वह निवास करता है ।
6. क्रोध से वह नष्ट होता है ।
7. धर्म विश्व का आधार है ।
8. जो धर्म दूसरों को कष्ट दे, वह धर्म नहीं है ।
9. पराये धर्म का त्याग ही कल्याणकारी है ।
10. धर्म ऐसा मित्र है, जो मरने के बाद मनुष्य के साथ जाता है ।
11. धर्म सुख-शान्ति का एकमात्र उपाय है ।
12. धर्म भारतीय धर्मो का स्वरूप है ।
3. भारतीय धर्मोका स्वरूप:
धर्म प्रधान भारतीय समाज की विभिन्नता ही उसकी प्रमुख विशेषता रही है । विश्व के प्रमुख सभी धर्म भारत में विद्यमान हैं । एम॰ए॰ श्रीनिवास के अनुसार: ”भारतीय जनगणना में दस विभिन्न धार्मिक समूह बताये गये हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी तथा अन्य जनजातियों के धर्म व गैर जनजातियों के अन्य धर्म ।
भारत की जनसंख्या में हिन्दू 82.64 प्रतिशत, तो मुसलमान 12 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, सिख 2 प्रतिशत, बौद्ध 0.81 प्रतिशत, जैन 0.50 प्रतिशत, पारसी 001 प्रतिशत हैं । शेष धर्मो के अनुयायियों का प्रतिशत कम है । यहां हम सर्वप्रथम हिन्दू धर्म की विशेषताओं को देखते हैं, तो ज्ञात होता है कि
(क) हिन्दू धर्म:
वास्तव में बहुत जटिल धर्म है । यह भारत का सबसे प्राचीन धर्म है । हिन्दू धर्म में किसी अन्य धर्म की भांति किसी धार्मिक एक गन्धों की तरह न एक पैगम्बर है न एक ईसा है ।
कुछ निश्चित धार्मिक विधियों एवं पूजन विधियों पर आधारित धार्मिक समुदाय का धर्म नहीं है । एक तरफ हिन्दू धर्म प्रकृति की प्रत्येक वस्तु की मौलिकता को प्रकट करता है, तो दूसरी ओर वह समाज और व्यक्ति तथा समूह की आचरण सभ्यता को प्रकट करता है ।
यह विस्मयकारी विविधताओं पर आधारित है । कहीं शाकाहारी हिन्दू है, तो कहीं मांसाहारी हिन्दू है । एक पत्नीव्रत आदर्श संहिता है, तो कहीं बहुपत्नी व्रत है । हिन्दू धर्म में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं, जिनका अपना अलग इतिहास है ।
उसके सरकार एवं विधि-विधान है । सबकी निजी, आर्थिक एवं सामाजिक विशेषताएं हैं । उनमें सर्वप्रथम है: वैष्णव धर्म, जिसमें शंकराचार्य रामानुज, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य. चैतन्य, कबीर, राधास्वामी प्रचलित मत सम्प्रदाय हैं ।
दूसरा शैव धर्म है । इसमें 63 शैव सन्त हैं, शाक्त मत भी हैं । ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन, अरविन्द योग, आचार्य रजनीश, आनन्द मूर्ति जैसे मत प्रचलित हैं । हिन्दू धर्म सहिष्णु धर्म है ।
(ख) इस्लाम धर्म:
यह भारत में अरब भूमि से आया । हजरत मोहम्मद ने 571-632 में अरब में इस्लाम धर्म का प्रतिपादन किया । ऐसी मान्यता है कि ईश्वरीय पुस्तक कुरान के मूल पाठ को सातवें स्वर्ग से अल्लाह के हुक्म से जब्रील ने उसे मोहम्मद साहब को सुनाया और उन्होंने उसे वर्तमान रूप में प्रचलित किया ।
भारत में इस्लाम का पदार्पण अरब सागर के मार्ग मुस्लिम व्यापारियों के माध्यम से आया । प्रारम्भ में लोगों के विरोध के बाद मोहम्मद साहब इसे मक्के से मदीने की ओर ले गये ।
जहां 24 सितम्बर 622 से हिजरी संवत् प्रारम्भ हुआ । भारत में 1526 में मुगल वंश के शासकों ने इसका प्रचार किया । इरलाम मूर्तिपूजा को नहीं मानता । अल्लाह के सिवा इनका कोई भगवान् नहीं, मोहम्मद साहब इसके पैगम्बर हैं ।
दिन में पांच बार मक्के की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार को सार्वजनिक नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत दान करना, जीवन में एक बार हज करना, इसके प्रमुख नियम हैं ।
अब इस धर्म का भारतीयकरण हो चुका है । इस धर्म में अधिकांश लोग परम्परावादी धार्मिक सिद्धान्तों का अनुकरण करते हैं ।
(ग) ईसाई धर्म:
भारतीय समाज का तीसरा प्रमुख धर्म है ईसाई । इस धर्म के प्रवर्तक ईश्वर पुत्र ईसा मसीह थे । ईसा धनिकों के अत्याचार और अहंकार के विरोधी थे । प्रेम, सदाचार और दुखियों की सेवा ही इस धर्म का मुख्य सन्देश है ।
मानव-समता में उनका अदूट विश्वास है । अपने शत्रुओं को क्षमा कर बिना किसी भेदभाव के सबकी सेवा ये ईसा मसीह के मूलमन्त्र थे । उनके विचार से गरीब, सताये हुए, अनपढ़ लोग सौभाग्यशाली हैं; क्योंकि स्वर्ग का राज्य उनके लिए सुरक्षित है ।
अमीर और अत्याचारी अभागे हैं; क्योंकि पापों के कारण उन्हें नरक के दुःख भोगने पड़ेंगे । उनके सन्देश उस वक्त के यहूदी पुरोहितों को सहन नहीं हुए । अत: रोमन प्रशासक ने उन्हें कूस पर कीलों से जड़कर मारने का दण्ड दिया ।
कहा जाता है कि यीशु के 12 धर्माचारियों में से एक सेंट थामस भारत आये थे । उन्होंने इस धर्म का प्रचार किया । ईसाई धर्म विभिन्न मतों का एक संगठित धर्म
चर्च संगठन में धर्माधिकारियों के स्पष्ट पर सोपान है: ईसाई पादरियों और ननों ने वास्तव में समाज सेवा के बहुत कार्य किये । ईसाई धर्म कैथलिक तथा प्रोस्टैण्ट-दो सम्प्रदायों में विभक्त है । भारतीय सांस्कृतिक व राजनीतिक धारा के साथ जुड़कर इस समुदाय ने काफी योग दिया ।
(ध) सिक्स धर्म:
सिक्स धर्म भी भारतीय भूमि की उपज है । इस धर्म के संस्थापक गुरा नानक देव ही {1469-1539} हिन्दू खत्री परिवार में जन्मे थे । उन्होंने ओंकार परमेश्वर की सीख
दी । वे जाति-पाति के घोर विरोधी थे ।
आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों में उनका विश्वास् नहीं था । अनिश्चयों और निराशा से भरे हुए समय में उनकी सीधी-सच्ची वाणी जनभाषा थी, जिसमें शाश्वत मूल्यों का उद्घोष था ।
गुरुनानक के बाद 9 अन्य गुरुओं ने उनकी इस परम्परा को आगे बढ़ाया । वे गुरु हैं: अंगद, अमरदास, रामदास, अर्जुन, हरगोविन्द, हरराय, हरकिशन, गुरा तेगबहादुर एवं गुरा गोविन्द सिंह ।
इस धर्म ने पर्दाप्रथा, सतीप्रथा का विरोध किया । इनके धार्मिक कार्यो से तत्कालीन मुगल बादशाह रुष्ट हो गये । 605 में उन्हें यातनाएं देकर शहीद कर दिया । गुरा अर्जुन देव का ऐसा बलिदान सिक्स इतिहास में एक नया मोड़ था ।
गुरा हरगोविन्द ने सिक्सों को सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सशस्त्र होने की सलाह
दी । उन्होंने कई सफल युद्ध किये । औरंगजेब ने नवें गुरु तेगबहादुर को 1675 में दिल्ली में शहीद कर दिया ।
उनके पुत्र एवं दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने अधर्म के विरुद्ध सिक्स समुदाय को तैयार किया । 1699 में खालसा पंथ का उदय हुआ । पंचपियारों को खालसा में दीक्षित किया गया ।
तभी से पांच ककार धारण करने की प्रथा चली । प्रत्येक सिक्स के लिए केश, कंघा, कटार, कड़ा और कच्छा धारण करना अनिवार्य माना गया । गुरा गोविन्द सिंह ने धर्म के रक्षार्थ अपने चार पुत्रों का बलिदान दिया और किसी व्यक्ति को गुरा बनाने की परम्परा समाप्त की ।
उन्होंने गुरु ग्रन्ध साहब को गुरु मानते हुए शीश नवाने का आदेश दिया । वे अन्याय, अत्याचार व अनीति के विरोधी थे । सिक्स धर्म की प्रमुख शिक्षाएं हैं-निराकर ईश्वर की उपासना, उसी का नाम-जाप, सदाचारी जीवन, मानव सेवा ।
यह धर्म आत्मा की अमरता तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता है । सामूहिक प्रार्थना एवं सामूहिक भोज (लंगर) इसकी विशेषता है । इस धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय हैं: नानक पंथी, निरंकारी, निरंजनी, सेवा-पंथी ।
(ड.) बौद्ध धर्म:
बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया व द॰ एशिया तक फैला । इसके प्रणेता गौतम बुद्ध शाक्य वंश के महाराजा शुद्धोधन के पुत्र थे । उनका कार्य ईसा से छह शताब्दी पूर्व है । उनका नाम सिद्धार्थ भी था ।
बचपन से ही उनका हृदय मानव दुःखों, जैसे-बुढ़ापा, बीमारी तथा मृत्यु के प्रति करुणा से भरा था । मानव मात्र को इन दुःखों से छुटकारा दिलाने के लिए वे अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल तथा राजसी वैभव को छोड़कर चल दिये । छह वर्षो के कठोर तप से उनका हृदय सत्य के प्रकाश से भर गया ।
महात्मा बुद्ध ब्राह्मणवाद के कर्मकाण्डों और पशुबलि के घोर विरोधी थे । वे मध्यममार्गीय थे । दुःखों का मूल उन्होंने तृष्णा या इच्छा को बताया । इच्छा का अन्त करना दुःखों से मुक्त होना है ।
उन्होंने सम्यक विचार, सम्यक वाणी और सम्यक आचरण को मुक्ति का द्वार
बताया । प्राणी मात्र पर दया, प्रेम, सेवा और क्षमा को मानव का सच्चा धर्म
धर्म प्रचार के लिए उन्होंने भिक्षुओं को संगठित किया, जिसे अशोक जैसे महान सम्राट ने स्वीकारा । नगरवधू आम्रपाली भी इसमें सम्मिलित हुई । सत्य, अहिंसा, प्राणी मात्र पर दया का सन्देश देते हुए 80 वर्ष की आयु में 488 ई॰ पूर्व उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।
निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों-महायान और हीनयान-में बंट गया । आज इस धर्म के अनुयायी लंका, वियतनाम, चीन, बर्मा, जापान, तिबत, कोरिया, मंगोलिया, कंपूचिया में हैं ।
आठवीं शताब्दी में आते-आते ही इस धर्म का लोप हो गया । इसके कई कारण हैं । आज भी यह धर्म अपने सिद्धान्तों और आदर्शो के कारण कायम है ।
(च) जैन धर्म:
इस धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीरजी वैशाली के क्षत्रिय राजवंश में पैदा हुए थे । वे गौतम बुद्ध के समकालीन और अवस्था में उनसे कुछ बड़े थे । उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया और वर्ष के कठोर तप के बाद सत्य का प्रकाश प्राप्त किया । तभी से वे जिन कहलाये ।
जैन धर्म के में तीर्थकर हो चुके हैं । महावीर 24वें तीर्थकर थे । इस धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव हैं । इस धर्म के अनुसार कैवल्य मोल प्राप्त करने के विविध मार्ग हैं, जिसे तीन रत्न कहा जाता है ।
सम्यक विचार, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण इस धर्म का सार है । “अपना कर्तव्य करो, जहां तक हो सके, मानवीय ढग से करो” । दिगम्बर और श्वेताम्बर दो सम्प्रदायों में बंटे हुए इस धर्म में दिगम्बर साधु दिशा को वस्त्र मानकर वस्त्र नहीं पहनते ।
श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धारण करते हैं । जीवों के रूप में और देवताओं के रूप में आत्मा जन्म-मरण के चक्र में फंसी हुई है । इससे छुटकारा पाना ही मोक्ष है ।

(छ) पारसी धर्म:
पारसी धर्म भी भारतभूमि पर बाहर से आया है । पारसियों का आगमन भारत में वीं सदी में हुआ था । ये ईरान के मूल निवासी हैं । जब ईरान पर मुसलमानों का कब्जा हो गया, तो अनेक पारसी भारत आ गये । इस धर्म के संस्थापक जरस्थूस्त्र हैं ।
यह धर्म वैदिक धर्म की भांति अति प्राचीन है । कुछ विद्वानों के अनुसार जरज्यूस्त्र ईसा से 5000 वर्ष पूर्व हुए थे । ऋग्वेद और इनकी धार्मिक पुस्तक अवेस्ता में अनेक बातों में समानता है ।
इस धर्म के अनुसार अहुर्मज्दा ही एकमात्र ईश्वर है । वही विश्व के सूष्टा हैं । जीवन नेकी तथा बदी, पुण्यात्मा तथा पापात्मा दो विरोधी शक्तियों के संघर्ष में विकसित होता है । अन्त में विजय पुण्यात्मा तत्त्व की होती है ।
अहुर्मज्दा पवित्र अग्नि का प्रतीक है, जो शुद्धता और उज्जलता का प्रतीक है । इसीलिए पारसी अग्नि की पूजा करते हैं और मन्दिर के रूप में अग्निगृह इआतश-बहराम का निर्माण करते हैं ।
इस धर्म के त्रिविध मार्ग-अच्छे विचार, अच्छे वचन, अच्छे कर्म-हैं । पारसी धर्म संन्यासी जीवन को नहीं मानता । भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा औद्योगिक विकास में इस धर्म का बड़ा हाथ रहा है ।
(ज) यहूदी धर्म:
यहूदी धर्म एक प्राचीन धर्म है । इनका विश्वास है कि इनके पैगम्बर मूसा थे, जो प्रथम धर्मवेत्ता माने जाते हैं । इनके प्रथम महापुरुष अब्राहम ने ईसा से 1000 पहले यहूदी कबीले के स्थान पर अपना मूल स्थान उर छोड़ दिया ।
उनके शक्तिशाली सम्राटों द्वारा गुलाम बनाये जाने पर हजरत मूसा ने ईश्वरीय आदेश के अनुसार उन्हें दासता से मुक्त कराया और दूध, शहद से भरपूर धरती पर
हजतर मूसा को ही जवोहा अथवा यवोहा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है । उन्हें दस आदेश प्राप्त हुए थे । यहूदियों का धार्मिक ग्रन्ध हिन्दू बाइबिल अथवा तौरत
29 पुस्तकों के इस संग्रह को पुराना अहमदनामा भी कहते हैं । यहूदी धर्म में नैतिक जीवन को विशेष महत्त्व दिया गया है । सत्याचरण वाला व्यक्ति ही स्वर्गारोहण का अधिकारी होता है । यहूदी धर्म संन्यास और आत्मपीड़ा के विरुद्ध है । जेरूसलम यहूदियों का पवित्र नगर है ।
4. उपसंहार:
इस प्रकार भारतभूमि पर विश्व के लगभग सभी धर्मो के समुदाय बसते हैं । समय के साथ-साथ उनका भारतीयकरण भी हुआ । सभी धर्मो में समान धार्मिक नियम, आपसी प्रेम, सदभाव, भाईचारे, सुविचार, सत्कर्म पर बल दिया गया है ।
धर्मनिरपेक्षता हमारी पहचान है । वर्तमान में कुछ संकीर्णतावादी विचारधारा के लोग सम्प्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । हमें इनसे बचना है; क्योंकि सच्चा धर्म मानवता का है, जो हमें पतन से रोकता है ।
Hindi Essay # 3 भारत की महान दार्शनिक परम्पराएं | India’s Great Philosophical Traditions
2. दर्शन क्या है.
3. दर्शन के विभिन्न स्वरूप ।
भारत एक विशाल देश है । इस धर्मप्रधान देश के समाज में दार्शनिकता का भाव विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ता है । भारत में जितने धर्म प्रचलित हैं, उनका आधार आस्तिकता एवं, नास्तिकता है ।
भारतीय-धर्मों में दर्शन का प्रभाव अपने विशिष्ट स्वरूप में भी दिखाई पड़ता है । भारतीय दर्शन से उपजी संस्कृति अपना अद्वितीय स्थान रखती है ।
दर्शन शब्द की उत्पत्ति दृश धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है-देखा जाये, अर्थात् जिसके द्वारा संसार वस्तुजगत् का ज्ञान प्राप्त कर सके तथा जिसके द्वारा उस परम तत्त्व को देखा जाये, वही दर्शन है ।
एक प्रकार से दर्शन मानव मन की जिज्ञासा और आश्चर्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जिसके द्वारा क्यों, कब, कहां, कैसे ? इन प्रश्नों के तथ्यात्मक एवं बौद्धिक उत्तर जानना तथा उसके अन्तिम यथार्थ को जानने का प्रयास की दर्शन है ।
दर्शन आदर्शों से शासित होकर व्यक्ति जीवन, जगत् आदि के स्वरूप का अध्ययन करता है । बौद्धिकता से अनुशासित होने के कारण दर्शन और विज्ञान में तात्विक भेद नहीं है ।
वैज्ञानिकों के निष्कर्ष सर्वत्र समान होते हैं, जबकि जगत् के निरपेक्ष अपार्थिव स्वरूप में विवेचन में हम विमिन, दार्शनिक परिणामों में पहुंचते हैं । दर्शन मनुष्य की क्रियाओं की व्याख्या एवं श्लोकन करता है ।
डॉ॰ शम्यूनाथ पाण्डेय के अनुसार: ”धैर्य और सहिष्णुता गधे में ही है, किन्तु गधे में उक्त गुण स्वभाव एवं प्रकृति का अंग है । जबकि यति में यह गुण उसके जीवन दर्शन के कारण है । दर्शन एवं संस्कृति का घनिष्ठ सम्बन्ध है । दर्शन के बिना संस्कृति अंधी है । दर्शन मानव स्वभाव का निर्माता है ।”
3. दर्शन का स्वरूप:
भारतीय जीवन दर्शन का स्वरूप हमें जिन दार्शनिक परम्पराओं में मिलता है, उनमें प्रमुख हैं:
(क) वेद दर्शन:
भारतीय दर्शन का मूल आधार वेद है, जो आस्तिकतावादी दर्शन के अन्तर्गत सर्वमान्य एवं शाश्वत आधार है । वे मानव को प्रकृति का अंग मानते हैं । इसी आधार पर प्रकृति के विषय में हमारा जीवन दर्शन निर्धारित होता है ।
यदि ऐसा नहीं होता, तो हम न तो प्रकृति के रहस्यों को जान पाते और न ही पुनर्जन्म का विचार होता, न ही कर्म महत्त्वपूर्ण होता ।
(ख) उपनिषद दर्शन:
उपनिषदों में सत्य को परमब्रह्म कहा गया है । उसी की अभिव्यक्ति संसार है । वह अजन्मा और अमर है । उसका अस्तित्व शरीर से पृथक् है, जो कि नश्वर है । ज्ञान के प्रकाश में ही उसे समझा जा सकता है ।
(ग) स्मृति एवं गीता दर्शन:
स्मृतियों को हिन्दू समाज के सामाजिक विधि-विधानों का ग्रन्थ कहा जाता है । इसमें कर्म, पुनर्जन्म, पुरुषार्थ एवं संस्कारों का वर्णन है, जिनके द्वारा मानव जीवन पूर्णता को प्राप्त करता है । वर्णाश्रम व्यवस्था इसी दर्शन का अंग है ।
गीता दार्शनिक स्तर पर हिन्दुओं की चरम उपलब्धि है । परमात्मा रूपी कृष्ण तथा अर्जुन रूपी आत्मा को निष्काम कर्म के द्वारा मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं । गीता में स्पष्ट कहा गया है कि अनासक्त भाव या निष्काम भाव से कर्म करना ही मानव कल्याण है, जीवन की सार्थकता है ।
(घ) षडदर्शन:
भारतीय जीवन दर्शन में षडदर्शन का प्रमुख स्थान है । दर्शन 6 हैं: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा ।
{अ} न्याय दर्शन:
इसकी रचना 300 ईसा पूर्व गौतम ऋषि ने अपने न्याय सूत्र में की थी । उनके अनुसार-समस्त अध्ययन का आधार तर्क है । इसमें पुनर्जन्म की अवधारणा को मान्य किया गया है । ब्रह्म एव ईश्वर में विश्वास तथा मोक्ष के लिए ज्ञान आवश्यक माना गया है ।
{ब} वैशेषिक दर्शन:
इसकी रचना 300 ईसा पूर्व कणाद ऋषि ने की थी । उनके अनुसार जगत् की उत्पत्ति परमाणुओं की अन्त-क्रिया से होती है, जो कि शाश्वत एव अविनाशी है । परमाणु स्वयं उत्पन्न है । सारी संस्कृति और सारी प्रकृति परमाणु की विभिन्न अभिक्रियाओं से बनी है ।
यह जगत् परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न है, विकसित है और प्रलय से नष्ट होता है । बाद में यही प्रक्रिया चलती रहती है । परमाणु न तो उत्पन्न किये जाते हैं, न ही नष्ट किये जाते हैं । इसीलिए वैशेषिक क्रियाओं के द्वारा जगत् की प्रक्रियाओं को समझने के लिए किसी अलौकिक जीवों के अस्तित्व या विश्वास की आवश्यकता नहीं है ।
{स} मीमांसा दर्शन:
400 ईसा पूर्व जेमिनी ने मीमांसा दर्शन प्रतिपादित किया । यह एक व्यावहारिक दर्शन है । वेदों को प्रमाण मानते हुए उसके केन्द्र में कर्मकाण्ड, उपासना और अनुष्ठानों के स्वरूप और नियम हैं । यह पूर्व मीमांसा दर्शन है । इसमें देवताओं की उपासना के साथ-साथ परमसत्य का हल ढूँढने की चेष्टा नही है ।
उत्तर मीमांसा की रचना बादरायण ऋषि ने की थी । चार अध्यायों में विभक्त इस दर्शन के 555 सूत्र हैं । यह दर्शन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष पर बल देता है । इसके चार अध्यायों में ब्रह्मा, प्रकृति, विश्व के साथ अन्य जीवा के सम्बन्ध, ब्रह्म विद्या से लाभ मृत्योपरान्त आत्मा का भविष्य बताया गया है ।
{द} वेदान्त दर्शन:
500 ईसा पूर्व पाणिनी ने इसका प्रतिपादन किया । इस प्रत्ययवादी दर्शन में समस्त सृष्टि को एक ही ब्रह्म की अभिव्यक्ति माना गया है । दृश्य जगत् उस ब्रह्म की प्रतिछाया मात्र है । इसके पांच समुदाय हैं, जिनके प्रर्वतक हैं: शंकर, रामानुज, मध्य, वल्लभ तथा निबार्क । शंकर का कार्ताकाल वीं-9वीऐ शताब्दी का है । उन्होंने अद्वैतवाद की स्थापना की ।
उनके अनुसार पर ब्रह्म से उत्पन्न संसार एक भ्रम है, मिथ्या है, अयथार्थ है, माया है, ब्रह्म ज्ञान मुक्ति का मार्ग है । नवीं सदी में रामानुज के दर्शन को विशिष्टाद्वैतवाद, वल्लभ के दर्शन को शुद्धाद्वैतवाद, माध्याचार्य के दर्शन को द्वैतदर्शन, निबार्क के दर्शन को द्वैताद्वैत दर्शन कहा गया । वेदान्त और मीमांसा दर्शन एक दूसरे के पर्याय हैं ।
(इ) जैन दर्शन:
ईश्वर की अपेक्षा न रखने वाले दर्शनों में जैन दर्शन आत्म तत्त्व को मानता है । जैन धर्म दुःखों की निवृति को परम सुख की प्राप्ति मानता है । जैन धर्म तीन रत्नों-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चरित्र के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति पर बल देता है ।
इसकी प्राप्ति के लिए पांच व्रतों का पालन-अहिंसा, असत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह-प्रमुख है । जैन धर्म कर्म के सिद्धान्त पर विश्वास करता है । गृहस्थ जीवन को महत्त्व देते हुए भी वह संन्यास को श्रेयस्कर समझता है ।
(ई) बौद्ध दर्शन:
बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन है-प्रथम, संसार दुःखमय है । द्वितीय दुःखों का कारण है । तृतीय, वह कारण है तृष्णा, काम-तृष्णा, भव-तृष्णा । चतुर्थ, यदि दुःखों का कारण है, तो उसका निरोध भी किया जा सकता है ।
बौद्ध दर्शन अति दुःखवाद, अति कठोरवाद, अति सुखवाद से अलग मध्यम मार्ग की स्थापना करता है । इस अष्टांगिक मध्यम मार्ग में सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प. सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक प्रयत्न, सम्यक समाधि, सम्यक, स्मृति आते हैं । बौद्ध धर्म में स्त्रियों का प्रवेश सम्मिलित था ।
(ड.) चार्वाक या भौतिकतावादी दर्शन:
यह चार्वाक शब्द चव धातु से बना है, जिसका अर्थ है चबाना अर्थात् यह उन व्यक्तियों का दर्शन है, जो खाने-पीने, मौज उड़ाने में विश्वास रखते हैं । यह भौतिकतावादी दर्शन है, जो इन्द्रिय सुख या इन्द्रिय ज्ञान को सत्य मानता है ।
इसके अनुसार दृश्य जगत ही सत्य है । जीवन में भोग ही एकमात्र पुरुषार्थ है, अर्थात जब तक जीना है, सुखपूर्वक जीना है । ऋण लेकर भी घी पीना है । चिता में जला देने के बाद भी जीवन का पुनरागमन कैसे हो सकता है ? न कोई स्वर्ग है न कोई नरक है । ना कोई मोक्ष है । वेद मिथ्या है ।
भारत की दार्शनिक परम्पराओं में रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, दयानन्द, राजा राममोहन राय, टैगोर, अरविन्द योगी, साई बाबा, आचार्य रजनीश आदि के दर्शन प्रमुख हैं । इस तरह स्पष्ट है कि भारतीय दर्शन विश्व का विशिष्ट दर्शन है, जो जीव जगत्, ब्रह्म, संसार की व्याख्या तर्कपूर्ण ढग से प्रस्तुत करता है । मनुष्य अपनी समस्याओं का समाधान इसमें पा सकता है ।
Hindi Essay # 4 भरतीय कलाएं विकास एवं उनका स्वरूप | Indian Art Development and their Nature
2. भारतीय कलाओं की विरासत एवं विकास ।
वास्तुकला ।
नाट्यकला ।
साहित्यकला ।
3. उपसंहार ।
कला मानव जीवन की अभिव्यक्ति है । यह मानव अभिवृतियों की रागात्मक वृत्ति है । भर्तृहरि ने नीति दशक में लिखा है:
साहित्य , संगीतकला, विहीन: साक्षाल्पशु: पुच्छविशाहीन: । तृणन्न खादान्नपि जीवमानस्तद् भागधेयं परमशूनाम: ।।
अर्थात ”जो मनुष्य साहित्य, संगीत व कला से विहीन हैं, वे पूंछ और सींग से विहीन पशु ही हैं । परन्तु वे घास न खाकर जीवित रहते हैं । यह उन पशुओं का परम सौभाग्य है ।” कला किसी भी संस्कृति एवं विचारधारा ड्रा प्रतीक है, उसकी पहचान है । भारतीय संस्कृति में कला की समृद्ध विरासत रही है । वह सत्यम, शिवम, सुन्दरम के आदर्श पर आधारित है । भारतीय कला की अत्यन्त विपुल एवं व्यापक विरासत रही है, जो विश्व में बेजोड़ है ।
2. भारतीय कलाओं की विरासत एवं बिकास:
भारतीय कलाओं की विरासत संस्कृत की तरह प्राचीन है तथा विविधताओं से भरी है । उनमें गतिशीलता है, लयबद्धता है । वह अनुपम है । भारतीय कलाओं के स्वरूप में वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीतकला, नृत्यकला एवं साहित्यकला प्रमुख वास्तुकला-किसी भी महान् संस्कृति की पहली कला स्थापत्य कला, अर्थात वास्तुकला है ।
वास्तुकला चाहे कोई झोपड़ी हो या राजप्रासाद, वह तो रभूल यथार्थ से सम्बन्धित है । भारत में वास्तुकला का इतिहास 700-800 ईसा पूर्व तक से सम्बन्धित है । मोहनजोदड़ो और हड़प्पा एक नगरीय विकसित सभ्यता थी ।
उसकी वास्तुकला सुस्पष्ट एवं उच्चस्तरीय थी । बड़े नगरों के दो मुख्य भाग में दुर्ग थे, जिसमें नगराधिकारी रहते थे । शहर के निवासियों के लिए जो भवन थे, उनमें पक्की ईटों का इस्तेमाल होता था । इसके साथ ही लकड़ी के भवनों का प्रचलन भी पाया जाता था ।
मौर्यकाल {324-187} में लकड़ी की इमारतों के स्थान पर पत्थर की इमारतों की शुराआत होती है । व्यवस्थित वास्तुकला का इतिहास मौर्यकाल का है । इसमें चट्टानों को काटकर कन्दराओं का निर्माण होता था । बौद्धकालीन वास्तुकला में २लूप प्रमुख थे । रतूपों में वैशाली, सांची, सारनाथ, नालन्दा आदर्श नमूने थे ।
इसमें बहुत की सुन्दर तराशे हुए चार द्वार व सुन्दर मन्दिर सांची के थे, जिसका मंच अर्द्धवृत्ताकर संरचना का है । जंगला का प्रयोग प्रकाश और वायु के लिए था । द्रविड शैली के मन्दिर आयताकार होते थे, जिनके शिखर पिरामिड के रूप में होते थे ।
यह क्रमश: बीच की ओर छोटा होता जाता है । शीर्ष भाग में एक गुम्बदाकार स्तूपिका होती थी, जिसमें बने गवाक्ष व गलियारे अदूभुत थे । कांचीपुरम एवं महाबलीपुरम के मन्दिर प्रसिद्ध थे । तंजौर का वृहदीश्वर मन्दिर द्रविड शिल्पकला की सर्वोत्तम कृति थे ।
बेसर शैली भारतीय वास्तुकला का सुन्दर मापदण्ड है । यह नागर और द्रविड शैली का मिश्रण है । दक्षिणापथ में मन्दिर इसी शैली में बने हैं । देवगढ़ का दशावतार मन्दिर, उदयगिरि का विष्णु मन्दिर इस शैली के प्रसिद्ध मन्दिर हैं ।
इस्लामी वास्तुकला:
अरबी, ईरानी शैली मिश्रित यह वास्तुकला 1191 से 1707 तक चरमोत्कर्ष पर थी । इसमें मस्जिद, मकबरों, मदरसों, मीनारों का निर्माण हुआ । फतेहपुर सीकरी का भवन, बुलन्द दरवाजा, सलीम चिश्ती की दरगाह, आगरे का लालकिला, आगरे का ताजमहल अद्भुत नमूने हैं ।
17वीं शताब्दी की इस वास्तुकला में यूरोपीय शैल । के गिरजाघर मिलते हैं । सिक्स वास्तुकला-सिक्स गुरुद्वारे इसका अद्भुत नमूना हैं । 1588-1601 में बना हरमन्दर साहब का प्रसिद्ध अमृतसर रचर्ण मन्दिर है । यह 150 वर्गफुट के पवित्र सरोवर की बीच बना तिमंजिला भवन है । प्रथम मंजिल में गुरुग्रंथ साहब हैं । द्वितीय मंजिल में शीशमहल है । तृतीय मंजिल में गुम्बद की छतरियां हैं । इसमें समकालीन वास्तुकला सम्मिलित है ।
भारतीय मूर्तिकला:
भारतीय मूर्तिकला पत्थर, धातु और लकड़ी की है, जिस पर मुद्रा एवं भाव मूर्तियों को सजीव बनाते हैं । इसमें कुछ प्ररत्तर मूर्तियां हैं । ये मूर्तियां गांधार शैली की हैं । इसमें अधिकांश मूर्तियां विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य, शक्ति, जैन एवं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं ।
मानवीय सौन्दर्य बोध की चरम अभिव्यक्ति चित्रकला में भी मिलती है । भारतीय संस्कृति में चित्रकला की इस समृद्ध परम्परा में महर्षि वात्सायन के प्रसिद्ध कामसूत्र में 64 कलाओं का वर्णन मिलता है । चित्रकला में रेखाओं और रंगों के प्रयोग द्वारा वस्त्र, लकड़ी, दीवार व कागज पर चित्र बनाये जाते थे ।
प्रागैतिहासिक काल में कई गुहा चित्र भी मिलते हैं, जिनमें भीमबेटका के मानव व पशु-पक्षी के लाल रंगों के चित्र हैं । द्वितीय चरण में गुप्तकाल के अजंता, एलोरा और बाघ गुफाओं के भित्तिचित्र मिलते हैं । यह विश्वकला की अनुपम चित्रशाला है ।
यहा प्राकृतिक सौन्दर्य पर आधारित वृक्ष, पुष्प, नदी एव झरनों के चित्र हैं । वहीं अप्सराओं, गन्धवों एव यक्षों के चित्र हैं । बुद्ध और उनके विभिन्न रूपों के जातक कथाओं के चित्र भी मिलते हैं जिसमें नीले, सफेद, हरे, लाल, भूरे रंगों का काल्पनिक रग संयोजन अदभुत सौन्दर्य को प्रकट करते हैं ।
इन चित्रों में करुणा, प्रेम, लज्जा, भय, मैत्री, हर्ष, उल्लास, घृणा, चिन्ता आदि सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण है । गुप्तोत्तर काल की चित्रकला में लघु चित्रकला शैली का विकास हुआ । यह पूर्वी और पश्चिमी सम्प्रदायों से मिश्रित राष्ट्रीय शैली थी । इस शैली के चित्रों में अनन्त विविधता है ।
बंगाल, बिहार, नेपाल गे 11 वीं एवं 21वीं शताब्दी में विकसित हुए इन चित्रों में वस्त्र एवं अलंकारों से प्रादेशिकता का प्रभाव झलकता है । मुगलकालीन चित्रकला में परशियन तथा भारतीय दोनों प्रभाव परिलक्षित होते है । अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ ने चित्रों के प्रति गहरा लगाव प्रस्तुत करते हुए पशु-पक्षियों आदि के चित्र बनवाये ।
इन चित्रों में भावहीन चेहरे और निश्चल पशु-पक्षियों के चेहरे देखने को मिलते हैं । राजस्थानी चित्रकला मुगल एवं पश्चिमी परम्परा से मिश्रित एक स्वतन्त्र कला है । हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ी आकृति, पृष्ठभूमि रेखा और रंग की दृष्टि से काफी विविधताएं हैं । इसमें कृष्ण लीलाओं तथा राग-रागनियों का मिश्रण है ।
कागड़ा शैली के बाद विकसित मराठा शैली की भी अपनी विशिष्ट पहचान है । चित्रकला में पटना एवं मधुबनी शैली भी उल्लेखनीय है । आधुनिक युग में यूरोपीय प्रभाव के कारण नयी शैली विकसित हुई । रवीन्द्रनाथ टैगोर, नन्दलाल बोस, जामिनी राय, अमृता शेरगिल, जतिन दास, मकबल फिदा हुसैन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
भारतीय संगीतकला का जन्म वेदों से हुआ है । नाद, अर्थात् संगीत को ब्रह्म कहा गया है । इसीलिए उसकी तरंगें हृदय को छूती हैं । भारतीय संगीत सामवेद से जन्मा है । लोकगीतों तथा शास्त्रीय संगीत में विकसित एवं परिष्कृत भारतीय संगीत का आधार राग है ।
राग, रबर, माधुर्य की एक ऐसी योजना को कहते हैं, जिसमें स्वरों को परम्परागत नियमों में बांधा गया है । सात सुरों से प्रारम्भ हुए संगीत में उषाकाल, प्रभात, दोपहर, सच्चा, रात्रि और अर्द्धरात्रि के अनुसार रागों का विभाजन है ।
भारतीय संगीत में ताल का विधान अत्यन्त जटिल एवं विस्तृत है । इसमें विलम्बित, भव्य एवं दुत ताल प्रसिद्ध हैं । वर्गीकरण की दृष्टि से शास्त्रीय संगीत एवं सुगम संगीत दो पद्धतियां हैं । शास्त्रीय संगीत की मुख्य दो पद्धतियां हैं: हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत । हिन्दुस्तानी संगीत में ध्रुपद, ठुमरी, ख्याल, टप्पा प्रसिद्ध हैं । इससे सम्बन्धित घराना में ग्वालियर, आगरा, जयपुर, किराना घराना है ।
ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ बालकृष्ण दुआ, रहमत खां हैं । आगरा घराने से रस्थन खां, फैयाज खां, जयपुर खां, किराना घराना से अछल करीम खां, अकुल वालिद खां हैं । कर्नाटक संगीत शैली में तिल्लाना, थेवारम, पादम, जावली प्रमुख हैं । कर्नाटक संगीत कुण्डली पर आधारित है ।
इसमें लहर की भांति उच्चावचन नियमित हैं । इसके अतिरिक्त विभिन्न गायन शैलियों में धमार, तराना, गजल, दादरा, होरी भजन गीत, लोकगीत इत्यादि हैं । संगीत की प्रमुख राग-रागनियों में भैरवी, भूपाली, बागश्री, भैरव, देस, बिलावल, यमन, दीपक, विहाग, हिण्डोली, मेघ आदि हैं ।
इसमें प्रयुक्त होने वाले वाद्य हैं: सारंगी, वायलिन, मृदंगम, नादस्वरम, गिटार, सरोद, संतूर, सितार, शहनाई, बांसुरी, तबला, वीणा, पखावज, हारमोनियम, जलतरंग आदि । प्रमुख वादकों में बाल मुरलीधरन, अमजद अली खां, शिवकुमार शर्मा, पण्डित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, जाकिर हुसैन, अल्लारखा खा, हरिप्रसाद चौरसिया, रघुनाथ सेठ हैं ।
प्रमुख गायकों में चण्डीदास, बैजू बावरा, तानसेन, विष्णु दिगम्बर पलुरकर, विष्णुप्रसाद भातखण्डे, एम॰एम॰ सुबुलक्ष्मी हैं । इस प्रकार भारतीय संगीत वेदों से प्रारम्भ होकर बौद्धकाल मौर्य तथा शुंग काल में काफी विकसित हुआ । किन्तु कुषाणकाल में कनिष्क तथा समुद्रगुप्त के शासनकाल में अत्यधिक विकसित हुआ ।
अश्वघोष नामक महान संगीतज्ञ इसी काल में हुए । मध्यकाल में संगीत का स्वरूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है । इसमें गजल, ख्याल, ठुमरी, कब्बाली आदि है । आधुनिक युग में भारतीय संगीत में कुछ पश्चिमी प्रभाव भी दिखता है । आधुनिक चलचित्रों के विकास ने इसे अधिक लोकप्रिय बना दिया है ।
शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, लोकसंगीत के साथ-साथ पार्श्वगायन में नूरजहां, सुरैया, खुर्शीद, सहगल, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर, मुकेश, मन्नाडे, आशा भोंसले विश्व प्रसिद्ध हैं । वहीं गजल के क्षेत्र में जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, पंकज उधास, राजेन्द्र मेहता, नीना मेहता प्रसिद्ध हैं । भजन में पुरुषोत्तम दास जलोटा, अनूप जलोटा व शर्मा बसु प्रसिद्ध हैं ।
नृत्यकला भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है । हरिवंश पुराण में उर्वशी, हेमा, रम्भा, तिलोत्तमा आदि देव नर्तकियों के नाम आते हैं । भारतीय नृत्यकला अति प्राचीन है । इसका समय ईसा की प्रथम शताब्दी के आसपास ही निर्धारित हो गया था ।
भारतीय नृत्यों में धर्म अभिव्यक्ति का प्रमुख आधार रहा है । इसमें सामाजिक जन-जीवन से जुड़े नृत्यों की परम्परा भी रही है । शास्त्रीय नृत्य में ताण्डव, भरतनाट्यम, कथक, कथकलि सम्मिलित हैं । भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में संगीत, नृत्य एवं कविता का अद्भुत समन्वय मिलता है ।
इसका उद्देश्य मनुष्य में पवित्रता, सदाचार, मानव मूल्यों का संचार करना है । ये नृत्य कठिन साधना पर आधारित रहे हैं । इसके अतिरिक्त लोकनृत्यों में बिहू, नागा नृत्य, दोहाई, महारास, बसन्त रास, कुंज रास, उखल रास, सुआ ढाल, पंडवानी, डण्डा, करमा, कमा, लावणी, तमाशा, झाऊ, जात्रा, नौटंकी, यक्षगान, डांडिया, भांगड़ा, गिद्धा प्रमुख हैं ।
वैदिककाल में मेले में युवक-युवतियां नृत्य करते थे । नगरवधुएं अपने आमोद-प्रमोद के लिए नृत्य किया करती थीं । देवदासी के साथ-साथ सार्वजनिक नृत्यशालाएं प्रचलित थीं । मौर्य तथा कनिष्क के समय में नृत्यों का पुनर्जागरण हुआ ।
गुप्तकाल नृत्यकला का स्वर्ण युग था । मुगलकालीन नृत्यकला दरबारों तक सीमित शी । आधुनिक युग में पश्चिम के प्रभाव में डिस्को, कैबरे, ब्रेक डांस, बैले आदि का प्रभाव भारतीय नृत्यों में आ गया है । साथ ही फिल्मीकरण के कारण अश्लीलता और कामुकता आ गयी है । अर्द्धनग्न शैली में भोंडापन नृत्यों में दिखाई देता है ।
नृत्य की शास्त्रीय परम्परा को उदयशंकर, गोपीकृष्ण,बिरजू महाराज, उमा शर्मा, सितारा देवी, सोनल मानसिंह, वैजयन्ती माला जैसे नृत्य प्रेमी जीवित रखने का प्रयास करते रहे हैं । वहीं भारत सरकार एवं राज्य सरकारें भी इस प्रयास में शामिल हैं ।
नाट्यकला को ललित कला भी माना जाता है, जिसमें मनोरंजन तथा अभिनय व रस की सृष्टि की जाती है । भरत के नाट्यशास्त्र में 11 प्रकार के नष्टको का वर्णन है । पाणिनी और पतंजलि की व्याकरण सम्बन्धी रचनाओं में नाट्य सम्बन्धी सूत्र हैं ।
भरत के नाट्यशास्त्र में नाटक से सम्बन्धित विविध पक्षों, रंग, वस्तु, अभिनय, संगीत आदि का विशद निरूपण है । इसी प्रकार अश्वघोष, कालिदास, शुद्रक प्रसिद्ध नाटककार थे । कालिदास के नाटकों-अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोर्वशीय तथा शूद्रक का मृच्छकटिकम, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस-प्रसिद्ध है ।
विशुद्ध नाटकों की परम्परा के साथ-साथ लोकनाट्य, नटों की कला, रामलीला, कृष्णलीला, कठपुतली, नौटंकी, स्वांग भारतीय जनजीवन को मनोरंजन के साथ-साथ संस्कृति का ज्ञान भी कराते हैं । 19वीं शताब्दी में नुक्कड़ नाटक, झफ्टा, {जनवादी नाट्य} प्रचलित हैं । आज नाट्यकला में अनेक नवाचारों का प्रयोग किया जा रहा है ।
भारतीय साहित्यकला:
भारतीय साहित्यकला की इतनी समृद्ध, गौरवशाली, विपुल तथा सशक्त विरासत है, जिस पर सभी को गर्व होगा । धार्मिक साहित्य में वेद, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद आते हैं । वैदिक साहित्य में शक्तिशाली देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष का वर्णन है ।
वैदिककाल में 6 वेदांग हैं, इनमें शिक्षा, व्याकरण, कल्प, छन्द, ज्योतिष, निरुक्त हैं । प्राचीन भारतीय साहित्य में रामायण एवं महाभारत प्रसिद्ध पुस्तकें हैं । रामायण में जहां राम का आदर्श चरित्र है, वहीं महाभारत में कौरव और पाण्डव के बीच युद्ध की कथा है ।
जैनियों और बौद्धों के धार्मिक य-थ व्यक्तियों और घटनाओं पर आधारित हैं । जातक कथाएं पालि भाषा में हैं । जैन गन्धों की भाषा प्राकृत है । कौटिल्य का अर्थशास्त्र भारतीय राजतन्त्र एवं अर्थव्यवस्था के समन्वय का उदाहरण है ।
गुप्तकालीन साहित्य संगम साहित्य, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन की जानकारी देता है । भारतीय विद्वानों में आर्यभट को गणितीय क्षेत्र में, कोसाइन साईन, पाई तथा शून्य निर्माण क्रिया की परिकल्पन पद्धति के लिए जाना जाता है ।
ब्रह्मगुप्त ने गुरात्चाकर्षण, वराहमिहिर ने खगोल, भूगोल, नागार्जुन ने रसायनशास्त्र के क्षेत्र में, इस्पात बनाने, पक्के रंग तैयार करने, चरक और सुभूत की संहिताओं में कपाल छेदन, हाथ-पैर काटे जाने तथा मोतियाबिन्द जैसी जटिल शल्यक्रिया का वर्णन है ।
जयदेव, अलवार और नयनार सन्त कबीर, नानक, गुरा गोविन्द सिंह, कल्हण, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, तुकाराम, नामदेव, ज्ञानेश्वर, बिहारी, घनानन्द, सेनापति, रसखान, प्रसिद्ध साहित्यकार रहे । आधुनिक युग में कविता, निबन्ध, नाटक, उपन्यास, एकाकी के साथ-साथ नयी विधाएं, रेखाचित्र, सस्मरण, आत्मकथा, जीवनी आदि प्रसिद्ध हुईं ।
प्रेमचन्द ने 300 कहानियां, 2 उपन्यास लिखकर कहानी व नाटक सम्राट का गौरव प्राप्त किया, वहीं प्रसाद ने ध्रुवरचामिनी, चन्द्रगुप्त, रकन्दगुप्त, अजातशत्रु आदि नाटक लिखकर नाटकसम्राट की उपाधि प्राप्त की । इस प्रकार साहित्य अपनी समृद्ध विरासत के साथ अपनी सृजन यात्रा में गतिशील है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति कलाओं के माध्यम से भी व्यक्त होती है । केला का निर्माण, रूप, प्रक्रिया एवं उसके सौन्दर्य बोध में कला का आनन्द प्राप्त होता है । कला संस्कृति का अंग है । कलाओं के प्रोत्साहन से मानव दुष्प्रवृत्तियों का शमन होता है ।
Hindi Essay # 5 लोकसंस्कृति की समृद्ध विरासत | The Rich Heritage of Popular Culture
2. लोक साहित्य के विविध प्रकार ।
लोकगाथा । लोकगीत ।
लोककथा । लोकनाट्य ।
अन्य विधाएं ।
3. लोक संस्कृति ।
लोक साहित्य, अर्थात् लोक का साहित्य । लोक साहित्य लोक का साहित्य होता है और लोक का आशय रूढ़िगत तथा अर्द्धशिक्षित, अशिक्षित जनता से है । ऐसे साहित्य में तर्क के स्थान पर सहज विश्वास की प्रवृत्ति मिलती है ।
लोक साहित्य के पीछे लोक का मानस, विचार, पद्धति तथा आदिम अनुभूति होती है, जो अपने मूल रूप के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । लोक साहित्य की भाषा जीवित होती है, जिसमें शास्त्रीय नियम व व्याकरण नहीं देखे जाते । इसकी सहज, रोचक शैली में जीवन की विविध अनुभूतियां मौखिक परम्परा में प्राप्त होती हैं ।
2. लोक साहित्य के विविध प्रकार:
लोक साहित्य के विविध प्रकारों में प्रमुख हैं:
(अ) लोकगाथा:
लोकगाथा लोककथात्मक गेय काव्य है, जो किसी विशेष कवि द्वारा लिखी जाती है, जिसमें गीतात्मकता और कथात्मकता होती है । यह पीढी दर पीढी हस्तान्तरित होती है । लोकगाथा का जन्म लोककण्ठ से होता है, जिसमें विचारों की सहजता, सरलता और विशेष पहचान होती है । इसमें मुहावरे, कहावतों और सरल छन्द का प्रयोग होता है । यह छोटी और बडी भी होती है ।
(ब) लोकगीत:
लोकगीत लोक में प्रचलित गीत होते हैं, जिनमें लोक मानस की लयात्मक अभिव्यक्ति होती है । लोकगीतों में सहजता और मधुरता होती है । इनमें छन्द, अलंकार आदि का चमत्कार नहीं होता है, इनमें मिट्टी की गन्ध होती है ।
(स) लोककथा:
लोककथा प्राचीनकाल से चली आ रही है । लोककथाओं में ऐसी कथाएं होती हैं, जो धार्मिक तथा व्रतानुष्ठानों से जुड़ी होती हैं । जैसे- महाभारत की कथा, रामायण की कथा ।
लोककथा वस्तुत: धर्मगाथाएं और पुराण कथाओं के रूप मे होती हैं । इनमें नैतिक जीवन मूल्यों की शिक्षा होती है । हमारे यहा स्त्रियां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, प्रार्थना के विषय में विभिन्न प्रकार की लोककथाएं कहती हैं ।
लोककथाओं का दूसरा रूप लोक कहानी के रूप में सामने आता है । लोक कहानी मौखिक रूप से प्रचलित रहती है और तीसरी तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह लोक में प्रचलित होती है । उसमें कोई-न-कोई लोक विश्वास अवश्य ही रहता है । इसमें लोक संस्कृति की झलक भी मिलती है । अंग्रेजी मे ऐसे ‘फाक टेल’ प्रचलित हैं ।
(द) लोकनाट्य:
लोक साहित्य में लोकनाट्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एव गौरवशाली स्थान होता है । लोकनाट्य में विभिन्न पात्र पद्यात्मक शैली में अपने संवाद प्रस्तुत करके समूचे वातावरण को अत्यन्त ही मनोरंजक बना देते हैं ।
लोकनाट्य अत्यधिक लोकप्रिय एवं प्रभावोत्पादक सिद्ध होते है । इनमें गीत, नृत्य, संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित होती है । गांवों में जनता नाट्य देखकर जितना अनुभव करती है, उतना अन्य किसी अन्य विद्याओं में नहीं करती है । लोकनाट्य को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं । इनमें: (1) नृत्य प्रधान लोकनाट्य में (अ) विदेशिया, कीर्तनियां, कुरंवजि, गबरी, रास, नकाब और अंकिया, रास प्रमुख हैं ।
(2) संगीत प्रधान लोक प्रधान लोकनाट्य में स्वांग, अर्थात् नकल की प्रधानता रहती है । इसमें नकल, गम्मत, स्वांग, करियाल बहुरूपिया, भवाई, नट-नटिन प्रमुख है ।
(इ) अन्य विधाएं:
लोक साहित्य में लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्य, लोककथा के अतिरिक्त भी अनेक विधाएं होती हैं । जैसे-मुहावरे, लोकोक्तियां, खेलगीत, लोरियां, पालने के गीत आदि । लोकोक्तियों में ग्रामीण जनता, पहेली, सूक्तियों का प्रयोग भी करती है । इन सभी में लोकजीवन का सार एवं मौखिक परम्परा सम्मिलित रहती है ।
3. लोक संस्कृति:
लोक संस्कृति का आशय लोकजीवन की संस्कृति से होता है । लोक संस्कृति अर्द्धशिक्षित, ग्राम्य जनसमूहों की उस संस्कृति का बोध कराती है, जो सीधे-सादे हैं । लोकजीवन में लोक का रहन-सहन, रीति-रिवाज, तीज, त्योहार, पर्व, खानपान, वेशभूषा, भाषा, धर्म, दर्शन, ज्ञान- विज्ञान, कला आदि विचार सम्मिलित होते हैं ।
लोक संस्कृति में वस्त्र सज्जा और मृगार प्रसाधनों का भी काफी उल्लेख मिलता है । घर में प्रयुक्त होने वाली दरी, बिछौन, रेशमी कलात्मक सामग्री के अलावा विशिष्ट परिधानों- चुनरी, धोती का उल्लेख मिलता है । लोक आभूषणों की सूची में महावर, केश विन्यास गुदाना, बिछिया, मुंदरी का भी वर्णन होता है ।
डोली, पालकी स्त्रियोचित वाहनों का प्रयोग होता है । लोक संस्कृति में पारिवारिक सम्बन्ध और समस्याएं, पारिवारिक जीवन की दिनचर्या, पारिवारिक जीवन के संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध निर्वाह, शिष्ट व्यवहार एवं आधार जो सौतिया डाह से लेकर देवर, ननद, भाभी के सम्बन्ध जैसे पारिवारिक संस्कारों का चित्रण मिलता है ।
लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोकप्रथाओं एवं मान्यताओं तथा सामाजिक मनोविनोद के साधनों, आश्रम व्यवस्था आदि का वर्णन मिलता है । चौसर, शतरंज, चिरई, उड़ान, कबूतर के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों का भी चित्रण मिलता है ।
लोक संस्कृति में लोक विश्वासों और मान्यताओं का बहुत अधिक महत्त्व होता है । जादू-टोना, टोटका, शगुन-अपशगुन होते हैं । इसमें कुछ धार्मिक विश्वास व मान्यता, तो कुछ लोक विश्वास की अद्भुत कथाएं होती हैं ।
लोकमंगल एवं लोककल्याण भारतीय संस्कृति का मूल स्वर है । लोकगीतों, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्यों, लोक संस्कृति में भारतीय जनजीवन धड़कता है । लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति की मौखिक एवं संपन्न विरासत हमारी भारतीयता की पहचान है । इसमें निहित लोकादर्श में मानवीय तत्त्व प्रमुख हैं । लोकजीवन में बसी लोक साहित्य एवं संस्कृति में मिट्टी की गन्ध है, लोकचेतना है ।
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Essay on Indian Culture in Hindi
हमारे भारत देश को पूरे विश्व में अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। हमारे भारत में बहुत सारे अलग-अलग प्रकार की संस्कृतियों को निभाया जाता है जो कि अलग-अलग धर्मों को स्थापित करती हैं। भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व अच्छे शिष्टाचार तहजीब सभ्य संवाद धार्मिक संस्कार मान्यताएं एवं मूल आदि को माना जाता है। भारत में लोग अपनी परंपराओं के लिए लोगों के बीच में बहुत ज्यादा चर्चित रहते हैं भारत एक ऐसा देश है जहां पर इसकी संस्कृति इसके वातावरण को दर्शाती है। अपनी संस्कृति और परंपराओं के वजह से भारत आज विश्व का एकमात्र ऐसा देश बन चुका है जहां पर अनेक संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। अपनी परंपराओं का पालन करते हुए भारत अपने और अपने देश के लोगों के साथ बहुत आदर भाव से और शांतिपूर्वक तरीके से रहते है। आज पूरे विश्व में भारत की संस्कृति और परंपरा की बात की जाती है भारत एकमात्र ऐसा देश बन चुका है जहां की संस्कृति और परंपरा उसके वातावरण को दर्शाती है।
Table of Contents
भारतीय संस्कृति:-
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है जिसे आज के समय में लगभग 50000 साल हो गए हैं। विश्व की सबसे पहली और महान संस्कृति के रूप में भारत की संस्कृति को ही देखा जाता है। विविधता में एकता का कथन यहां पर आम और अर्थात भारत एक विविधता पूर्वक देश है जहां विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ शांतिपूर्वक एक साथ मिलजुल कर रह सकते हैं। भारत देश में हर कोई अपने धर्म के अनुसार अपनी भाषा बोलने का तरीका, रीति रिवाज आदि हर एक चीज को अपने तरीके से अदा कर सकते हैं। पूरे विश्व में ही भारतीय संस्कृति इसीलिए बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर किसी भी धर्म के ऊपर किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। विश्व के बहुत रोचक और प्राचीन संस्कृति के रूप में भारत की इस महान सभ्यता को देखा जाता है। यहां पर अलग-अलग धर्मो, परंपराओं, भोजन, वस्त्र आदि से संबंधित लोग बिना किसी परेशानी के निवास कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति के अंदर किसी भी प्रकार के धर्म का उल्लंघन नहीं होता है।
भारतीय संस्कृति का महत्व:-
किसी भी देश की अपनी अपनी संस्कृति होती है और उसका अपना अपना महत्व होता है परंतु भारत देश में अनेक धर्मों को स्थापित किया गया है। यहां हर धर्म के लोग आजादी से रह सकते हैं किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर किसी को एक बंधन में रहना पड़ेगा। अन्य देशों द्वारा इस चीज को माना गया है कि जहां संस्कृति नहीं है वहां पर लोगों को अपने धर्म को निभाने में बहुत ज्यादा असुविधा होती है। परंतु भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर किसी भी धर्म को अपने धर्म के लिए कभी भी रोका टोका नहीं गया और ना ही कभी उस पर दबाव डाला गया। भारतीय संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) की महत्वता को जानने के लिए भारतीय परंपराओं को निभाना पड़ता है भारतीय संस्कृति के अनुसार हर कोई अपने-अपने सीमा में रहते हैं। यह पुरुषों के लिए अलग सीमा निर्धारित की गई है और महिलाओं के लिए अलग सीमा निर्धारित है। जहां पुरुष बाहर के सारे काम करेंगे और लोगों के साथ मेलजोल रखेंगे वहीं घर की महिलाएं अपने परिवार को अच्छे से संभालेंगे और अपने बच्चों को सही संस्कार देंगी।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता:-
हमारे भारतीय संस्कृति के अनुसार अलग परिवार जाति उपजाति और धार्मिक समुदाय में जन्म लेने वाले लोग एक साथ शक्ति पूर्वक रह सकते हैं। यहां किसी के ऊपर किसी प्रभाव का कोई स्रोत नहीं बनाया गया है। हर कोई अपने अपने अनुसार अपने जीवन को व्यतीत कर सकता है। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता में बहुत सारे अलग-अलग धर्मों के लोग निवास करते हैं जहां हर धर्म में एक दूसरे का अलग-अलग संस्कृतिक वातावरण देखा जाता है। आमतौर पर भारतीय संस्कृति हर किसी के लिए एक समान है परंतु यदि कोई भारतीय संस्कृति की निंदा करता है तो उसके लिए भी हमारे न्यायालय द्वारा कई सारे कानून बनाए गए हैं। भारतीय संस्कृति और सभ्यता भारत के दो ऐसे मूल्यवान वस्तु है जो भारत को एक ऊंचाई तक ले जाने में बहुत ज्यादा सहायक करते है। वैसे तो हमेशा ही हमारे देश में एक दूसरे के साथ मिलकर रहने की सीख दी जाती है जिसका पालन करना हर किसी का कर्तव्य हो जाता है।
भारतीय संस्कृति ना हो तो:-
यह तो हम सब जानते हैं कि भारतीय संस्कृति इतनी ज्यादा प्रचलित और प्रसिद्ध हो गई है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर कोई एक दूसरे से खेल की भावना रखेंगे और घृणा करेंगे। वैसे तो आज के समय में भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है लोग दूसरी संस्कृतियों (Essay on Indian Culture in Hindi) को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति को छोड़ रहे हैं जहां दूसरे देशों से लोग भारतीय संस्कृति को देखने आते हैं वही हमारे देश के लोग इस देश को छोड़कर के दूसरे देश पर जा रहे हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार महिलाओं को सबसे ज्यादा सभ्य होना चाहिए परंतु आजकल की महिलाएं छोटे छोटे कपड़े पहनती हैं और वह सारे गलत काम करती है जो उन्हें नहीं करना चाहिए जो सभ्यता के खिलाफ है। वहीं पुरुष लोग हर किसी से छोटी-छोटी बातों पर लड़ पढ़ते हैं जो भाईचारा जैसे बड़े-बड़े नीतियों को तोड़ता है। भारतीय संस्कृति का होना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है यह हम सब को एक साथ मिला जुला कर रखता है।
यह तो हम सब जानते हैं कि किसी भी देश के लिए उसकी संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) और सभ्यता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। परंतु यदि बाद भारत की बात कि जाए तो हम सब जानते हैं कि भारत केवल अपनी संस्कृति परंपरा वातावरण और सभ्यता के लिए ही लोगों के बीच में प्रकाशित हुआ है। कुछ यही कारण है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता को इतना ज्यादा माना जाता है। लोगों को भी भारतीय संस्कृति को आदर सम्मान देना चाहिए और उसको अच्छे से पालन करना चाहिए। यदि हर कोई भारतीय संस्कृति को आदर के साथ निभाए तो भारत एक अच्छी और ऐसी ऊंचाइयों को छू लेगा जहां उसका पहुंचना बहुत ज्यादा नामुमकिन सा है अभी।
1. भारतीय संस्कृति को स्थापित हुए कितने वर्ष हुए हैं?
उत्तर:- भारतीय संस्कृति को स्थापित हुए आज से करीबन 50000 साल हो गए हैं।
2. भारतीय संस्कृति का क्या महत्व है?
उत्तर:- यहां हर धर्म के लोग आजादी से रह सकते हैं किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर किसी को एक बंधन में रहना पड़ेगा। अन्य देशों द्वारा इस चीज को माना गया है कि जहां संस्कृति नहीं है वहां पर लोगों को अपने धर्म को निभाने में बहुत ज्यादा असुविधा होती है।
3. भारतीय सभ्यता और संस्कृति ना हो तो क्या होगा?
उत्तर:- यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर कोई एक दूसरे से खेल की भावना रखेंगे और घृणा करेंगे। वैसे तो आज के समय में भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है लोग दूसरी संस्कृतियों को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति को छोड़ रहे हैं जहां दूसरे देशों से लोग भारतीय संस्कृति को देखने आते हैं वही हमारे देश के लोग इस देश को छोड़कर के दूसरे देश पर जा रहे हैं।
4. भारतीय संस्कृति का क्या मतलब है?
उत्तर:- भारतीय संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) का मतलब है भारत द्वारा पारंपरिक तरीकों से बनाई गई संस्कृति या जो आज के समय में अच्छी तरीके से निर्वाचित नहीं की जा रही है।
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(2022) भारतीय संस्कृति पर निबंध- Essay on Indian Culture in Hindi
पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां अलग-अलग धर्म, जाति, पंथ, संस्कृति और परंपराओ के लोग मिलजुल कर शांति से रहते है। इसीलिए भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है। आज हम इन्हीं विविधताओं में से हमारी संस्कृति के बारे में जानने वाले है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। सम्मान, मानवता, प्रेम, परोपकार, भाईचारा, भलाई, धर्म आदि हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताएं है। आज हर देश आधुनिकता की दौड़ अपनी संस्कृतियों को छोड़ रहा है, लेकिन हम भारतीयो ने आज भी अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को नहीं छोड़ा है। इस वजह से हम एक ही देश में विविधता के साथ भी एक होकर शांति से रह पाए है।
Table of Contents
- 1 संस्कृति का अर्थ क्या है
- 2 संस्कृति और सभ्यता मे अंतर
- 3 भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं
- 4 भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव
- 5 संस्कृति का संरक्षण कैसे करे
- 6 निष्कर्ष
- 7.1 Q- हमारी भारतीय संस्कृति क्या है?
- 7.2 Q- भारतीय संस्कृति की विशेषता क्या है?
- 7.3 Q- भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों माना गया?
संस्कृति का अर्थ क्या है
हमारे प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति का अर्थ संस्कार बताया गया है। इसके अलावा सुधार, शुद्धि और सजावट जैसे शब्द भी प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति के लिए उपयोग किए गए है। कहा जाता है कि कौटिल्य ने विनय शब्द के अर्थ में संस्कृति शब्द का उपयोग किया था। भारत के चार वेदों में से एक यजुर्वेद में संस्कृति शब्द को सृष्टि कहा गया है।
संस्कृति को साधारण भाषा में समझें तो एक सामान्य मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन मूल्यों, तत्त्वों और मान्यताओं का योगदान होता है, उसे ही संस्कृति कहते है। संस्कृति हमें जीवन के आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देती है। इसके अलावा मनुष्य को विरासत में मिली कोई चीज़ जैसे शिल्प, कला या विचार भी संस्कृति कहलाती है।
संस्कृति दुनिया के किसी भी देश, समुदाय, जाति और धर्म के लिए एक आत्मा है। और उनकी पहचान उनकी संस्कृति से ही की जाती है। लेकिन आधुनिक बनने की दौड़ में कई देशों ने अपनी संस्कृति को मिटा दिया है। जबकि भारतीय संस्कृति न कोई मिटा सकता है और ना ही किसी के अंदर इतनी शक्ति है कि वो भारतीय संस्कृति को मिटा सके। इसलिए भारतीय संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति भी कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति में मानव कल्याण की भावना बहुत ज्यादा है। यहां पर हर कार्य लोगो के हित और सुख पर निर्भर करता है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम जैसे उद्देश्यो पर आधारित है। वसुधैव कुटुम्बकम यानि सभी सुखी और निरोगी रहे, सबका कल्याण हो और कोई भी मनुष्य दुखी न हो।
संस्कृति और सभ्यता मे अंतर
भले ही आज कुछ लोग संस्कृति और सभ्यता को एक मानते है, लेकिन इन दोनों में काफी अंतर है। क्योकि सभ्यता का सबंध मनुष्य के भौतिक विकास से है, जबकि संस्कृति का सबंध मनुष्य की सोच, विचार और अध्यात्मीक चीज़ों से है। मनुष्य का रहन-सहन, खान-पान या अन्य कोई बाहरी चीज़ को हम सभ्यता कह सकते है। परंतु संस्कृति का क्षेत्र तो काफी गहन और व्यापक है।

सभ्यता भौतिक अवस्था को दर्शाती है, जबकि संस्कृति बौद्धिक और आध्यात्मिक अवस्था को दर्शाती है। लेकिन इन दोनों के बीच बेहद घनिष्ठ संबंध है। जैसे एक मनुष्य किसी चीज़ को बनाता है, तो उसमें उसका शरीर और विचार दोनों काम करते है। इसलिए सभ्यता को शरीर और संस्कृति को आत्मा कहा जाता है। प्राचीन काल से ही विश्व में भारतीय संस्कृति ने सभ्यता के साथ आदरपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।
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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं
इस आधुनिक युग में भी हम भारतीयों ने अपनी प्राचीन संस्कृति को कभी नहीं छोड़ा, इसकी सबसे बड़ी वजह शायद हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताएं है। तो आइए एक-एक करके हम सभी भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को जानते है।
भारतीय संस्कृति की सबसे पहली विशेषता प्राचीनता है। मध्य प्रदेश के शैल चित्रों और नर्मदा घाटी में मिले कुछ पुरातत्वीय प्रमाणों से हमें पता चला कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता से भी हमें पता चला कि हमारी संस्कृति लगभग पांच हजार साल पुरानी है। वेदों में भी हमें भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का प्रमाण मिलता है। लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रमाणों के मुताबिक भारतीय संस्कृति रोम, मिस्त्र, यूनानी और बेबीलोनिया जैसी संस्कृतियों के समकालीन है।
भारतीय संस्कृति की दूसरी विशेषता है, निरंतरता। हमारी संस्कृति प्राचीन होने के साथ-साथ निरंतरता भी है। जिसके कारण ही भारतीय संस्कृति रोम , मिस्त्र, यूनानी, ईरान, अक्काद और बेबीलोन जैसी संस्कृतियों की तरह खत्म नहीं हुई। सदियों से चली आ रही कई परंपराओं को हम आज भी ऐसे ही निभाते आ रहे है। जैसे की सूर्य, वट और पीपल को देवी-देवता मानकर उनकी पूजा करना कई सदियो से चला आ रहा है। इसके अलावा वेदों और उपनिषदों की आस्था और विश्वास को आज भी माना जाता है। इतनी सदियों बाद भी हमारी संस्कृति के मूल्यों, आधारभूत तत्वों और वचनो में निरंतरता है।
- वसुधैव कुटुंबकम की भावना
वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है, पूरी दुनिया एक ही परिवार है। हमारी संस्कृति शुरु से ही अत्यंत उदार और समन्वयवादी रही है। हम लोग अपनी उन्नति और विकास के साथ-साथ संपूर्ण विश्व के विकास बारे में भी सोचते है। हमारे अंदर राष्ट्रवाद की भावना है, लेकिन जब किसी अन्य राष्ट्र पर संकट आता है तो हम उसकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते है।
हम सभी मनुष्यों को समान समझते है और उनके कल्याण की कामना करते है। क्योंकि हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है। इसलिए भारतीय संस्कृति विश्व की अन्य संस्कृतियों से अलग है। वसुधैव कुटुंबकम के महत्व को देखते हुए भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में ही इसे अंकित किया गया है।
- आध्यात्मिकता
आध्यात्मिकता को भारतीय संस्कृति का प्राण कहा जाता है। त्याग और तपस्या आध्यात्मिकता के मुख्य भाग है। मनुष्य जब त्याग को अपना लेता है, तब उसे हर चीज़ में संतोष प्राप्त होता है। उसके अंदर दूसरों के प्रति सहानुभूति होती है। त्याग से मनुस्य के अंदर लालच और स्वार्थ जैसी बुरी भावनाओं का विनाश होता है। वह हर काम को संयम से करने की कोशिश करता है। भारत के लोग ना केवल अपने धर्मों में विश्वास रखते है, बल्कि अन्य धर्मो का भी दील से सम्मान करते है।
- अनेकता में एकता
भारत उत्तर के पहाड़ी इलाकों से लेकर पूर्व की ब्रह्मपुत्र और पश्चिम की सिंधु नदियों तक फैला हुआ है। दक्षिण में घने जंगलों से लेकर गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदिया हमारे देश में शामिल है। पश्चिम के रेगिस्तानो से लेकर दक्षिण के तटीय प्रदेशो तक विशाल भारत है। इस तरह भारत में भौगोलिक रूप से अनेक विविधताए है।
भौगोलिक विविधताओं के साथ-साथ भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी काफी भिन्नता है। क्योकि भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, पंथ, लिंग समुदाय और भाषा के लोग रहते है। इन लोगों के खान-पान, रहन-सहन और बोल-चाल में काफी भिन्नता है। लेकिन भले ही भारत में धार्मिक और भौगोलिक रूप से कई विविधताएं हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से भारत एक है। इतनी विविधताओ के बाद भी भारत के सभी लोग मिलजुल कर प्रेम से रहते है। इसलिए भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है।
सहनशीलता भी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है। कई सदियो पहले जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुआ करते थे, तब भारत के लोगों पर कई आत्याचार किए जाते थे। इसके अलावा जब भारत पर अंग्रजी हुकूमत थी, तब भी हमारे देशवासियों पर बहुत जुल्म किया जाता था। लेकिन उस समय देश में शांति बनाए रखने के लिए भारतीयों ने सभी अत्याचारों को सहन किया था। इसका मतलब यह नहीं था कि हम इन लोगों से डरते थे। परंतु हमारी संस्कृति ने दी हुई सहनशीलता को हम कैसे भूल सकते थे।
सहनशीलता का प्रचार करने के लिए और इसका सही ज्ञान लोगो तक पहुँचाने के लिए भारत में कई महापुरुष जन्मे। जिसमें महावीर, बुद्ध, कबीर, चैतन्य, नानक और महात्मा गांधी जैसे कई नाम शामिल है।
जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुए, तब अनेक जातियों के लोग भारत में आकर बस गए थे। जिसमें शक, हूण, यवन और कुषाण जाति के लोग मुख्य थे। इन विदेशी लोगों के साथ-साथ उनकी संस्कृति भी भारत आई, लेकिन भारतीय संस्कृति के प्रहार ने इन सभी संस्कृतियो को अपनी धारा में प्रवाहित कर दिया। यह लोग हमारी संस्कृति में इतने गुल गए कि बाद में यही लोग भारतीय संस्कृति के प्रचारक बन गए। जैसे कि शको के राजा रुद्रदामन ने वैदिक धर्म, कुषाणो के शासक कनिष्क ने बौद्ध धर्म और हूणों ने शैव धर्म को अपना लिया था। इस तरह भारतीय संस्कृति की एक विशेषता उसकी ग्रहणशीलता भी है।
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भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव
अंग्रेज़ो से पहले भारत पर जितनी भी विदेशी प्रजा आई थी, वह सभी प्रजाओ ने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर उसे अपना लिया था। लेकिन अंग्रेज़ोने पहली बार हमारी संस्कृति को दबाने की कोशिश की थी। अंग्रेज़ जानते थे कि किसी भी देश पर शासन करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को मिटा दो। क्योकि जब लोग अपनी संस्कृति को भूल कर अंग्रेज़ो की संस्कृति अपना लेंगे तो वे सभी लोग मानसिक रूप से अंग्रेज़ बन जाएंगे। इसी चीज़ को अपनाकर अंग्रेज़ो ने न सिर्फ भारत पर शासन किया बल्कि विश्व के और भी कई देशो को अपना गुलाम बनाया था।
अंग्रेज़ो के समय में भारत के सामाजिक विचार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव था। जैसे कि संयुक्त कुटुंब अब कई परिवारों मे विभाजित होने लगे थे। लोगो के अंदर भौतिकवाद यानि भोग-विलास आने लगी थी। अब हमारा समाज धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ने लगा। जिसकी वजह से हम सभी लोग भारतीय सांस्कृति के मूल लक्ष्य से भटक गए थे।
अब धर्म और दर्शन मे नए-नए अविष्कार होने लगे, कला और विज्ञान के नाम पर नवीन साधनो का विकास हुआ। हमारी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में कई बदलाव आए, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी संस्कृतियों ने भारत और एशियाई देशो में कई नवीन चेतनाओ की शुरुआत की। इसकी वजह से अब लोग देश के लिए त्याग और बलिदान को भूलकर सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचने लगे थे।
लेकिन अंग्रेजों से आजाद होने के बाद भारत के लोगों ने फिर से अपनी संस्कृति को पहचाना और उसे सही अर्थों में अपनाना शुरू किया। इसीलिए कभी भी देश की संस्कृति को मिटने न दे, क्योकि संस्कृति के मिटने के बाद देश को मिटने में देर नहीं लगती।
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संस्कृति का संरक्षण कैसे करे
यदि कोई देश अपनी संस्कृति को संरक्षित नहीं करता है, तो शायद आने वाले कुछ सालो में उसे बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योकि इतिहास गवाह है कि जिस देश ने अपनी संस्कृतियों को छोड़ कर आधुनिक बनने की चक्कर किसी और देश की संस्कृति को अपनाया, आज वह दुनिया के नक्शे से गायब हो चुके है। यानि की उन पर किसी और देश का शासन चल रहा है। इसीलिए हमेशा अपनी संस्कृति का संरक्षण करे।
इसके लिए आप ज्यादा-से-ज्यादा अपनी धार्मिक परंपराओं के बारे में जानें, अपनी राष्ट्रीय भाषा का अधिक उपयोग करे, राजनैतिक और सामाजिक महत्व को समझे, अपनी संस्कृति पर गौरव करे, उसे दैनिक जीवन के आचरण में लाए और इन सभी चीज़ों को हमारी आने वाले पीढ़ी तक पहोचाए। इस तरह अगर हम इतनी चीज़ों को समझ लें और अपने दैनिक जीवन में अपना लें तो अपनी संस्कृति का संरक्षण कर सकते है।
भारतीय संस्कृति एक विचार है, जिसे कोई भी मनुष्य अपनाकर खुद का विकास कर सकता है। लेकिन आज की हमारी युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की ओर ज्यादा बढ़ रही है। हमें उन संस्कृतियों को छोड़कर विशालता और उदारता वाली भारतीय संस्कृति को अपनाना होगा। तभी हम भारत को एक विकसित राष्ट्र बना सकेंगे। इतना सब कुछ जानने के बाद शायद अब आप लोगों को पता चल ही गया होगा कि, आखिर संस्कृति क्या है और हमें इसकी रक्षा करने की आवश्यकता क्यों है?
अगर आपको इस निबंध से लाभ हुआ हो, तो इसे share करना न भूले। भारतीय संस्कृति पर निबंध पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद ( Essay on Indian Culture in Hindi )
Q- हमारी भारतीय संस्कृति क्या है?
ANS- हमारे प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति का अर्थ संस्कार बताया गया है। एक सामान्य मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन मूल्यों, तत्त्वों और मान्यताओं का योगदान होता है, उसे ही संस्कृति कहते है।
Q- भारतीय संस्कृति की विशेषता क्या है?
ANS- प्राचीनता, निरंतरता, वसुधैव कुटुंबकम की भावना, आध्यात्मिकता, अनेकता में एकता, सहनशीलता, ग्रहणशीलता जैसी कई विशेषताएं है।
Q- भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों माना गया?
ANS- भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसके अलावा भारतीय संस्कृति में अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया। इसलिए भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ माना जाता है।
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भारतीय संस्कृति पर निबंध

भारतीय संस्कृति पर निबंध : Essay on Indian Culture in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘भारतीय संस्कृति पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप भारतीय संस्कृति पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
भारतीय संस्कृति पर निबंध : Essay on Indian Culture in Hindi
प्रस्तावना :-
भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है। भारत की संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है, जिसे लगभग 5000 वर्ष प्राचीन माना जाता है। भारतीय संस्कृति पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
सभ्यता को शरीर व संस्कृति को आत्मा माना जाता है, यें एक-दूसरे के पूरक होते है। संस्कृति इस समाज को सभ्य बनती है। किसी भी देश के आदर्श व जीवनयापन का तरीका ही उसकी संस्कृति होती है।
भारत की संस्कृति में धार्मिक संस्कार एवं मान्यताएं है। लोग अपने धर्म के अनुसार परम्पराओं का पालन करते है। भारत समृद्ध संस्कृति वाला देश है, जिसकी सभ्यता से बड़ी सभ्यता कोई नहीं है।
संस्कृति का महत्व :-
संस्कृति एक समाज की ताकत होती है। वह एक समाज को जोड़कर रखने का कार्य करती है। संस्कार एक व्यक्ति को जीवन जीने का सही तरीका सिखाती है।
यें संस्कार हमारी पूंजी होते है, जो मनुष्य को सभ्य बनाते है। यें सामाजिक एकता को बढ़ावा देते है। हमारे देश की संस्कृति हमारें इतिहास को दर्शाती है।
संस्कृति इस समाज का रचनात्मक विकास करती है। यह हमें हमारा अस्तित्व प्रदान करती है। हमारी संस्कृति दूसरों को दिखाती है कि हम कौन है।
यह हमारे जीवन की गुणवत्ता बढ़ाती है, इसलिए किसी भी देश में संस्कारों का होना अत्यंत आवश्यक है। संस्कृति एक समाज को जीवन प्रदान करती है। इससे समाज व व्यक्ति दोनों का कल्याण होता है।
भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ :-
भारतीय संस्कृति की विभिन्न विशेषताएँ है, जो कि निम्नलिखित है:-
- भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन व समृद्ध संस्कृति है।
- भारतीय संस्कृति काफी उदार संस्कृतियों में से एक है।
- भारत की संस्कृति विविधता में एकता वाली संस्कृति है, क्योंकि यहाँ पर विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते है।
- भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता है।
- भारतीय संस्कृति काफी सहनशीलता वाली संस्कृति है, जिसने काफी आक्रमण सहें है और उसके बाद भी आज यह अपनी मूल स्थिति में है।
- विश्व की अनेकों संस्कृतियां समय के साथ समाप्त हो चुकी है, लेकिन भारत की संस्कृति निरंतर रूप से चली आ रही है।
- भारतीय संस्कृति शिशुनः संस्कृति है।
- भारत की संस्कृति में वर्णाश्रम व्यवस्था भी पाई जाती है।
- हमारी संस्कृति समानता रखने वाली संस्कृति है।
- भारतीय संस्कृति पुरे विश्व को एक परिवार के रूप में मानती है।
- यह संस्कृति प्रकृति प्रेमी संस्कृति रही है।
भारत की संस्कृति :-
भारत की संस्कृति हमेशा उदारता वाली संस्कृति रही है। यहाँ पर प्रत्येक धर्म को सम्मान दिया जाता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसकी संस्कृति दयालुता वाली है। यह आपको बड़ों का सम्मान करना सिखाती है।
भारत की संस्कृति अतिथि देवो भवः की संस्कृति है अर्थात इस संस्कृति में मेहमान को एक भगवान के समान समझा जाता है।
भारत ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों व जातियों के लोग एक साथ रहते है। आज समय बदलने के बाद बहुत सी संस्कृतियाँ विलुप्त हो गई है, लेकिन भारत की संस्कृति आज भी मौजूद है।
भारत की संस्कृति एक महान संस्कृति है। यहाँ पर योग व आध्यात्म पर विश्वास किया जाता है। भारत की संस्कृति बड़ी धर्मिक है। यहाँ लोग पूजा-पाठ व व्रतों में विश्वास रखते है। भारतीय संस्कृति मावनतावादी संस्कृति है।
हमें इस संस्कृति का सम्मान करना चाहिए और इसे अपनाना चाहिए और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को भी इससे अवगत करना चाहिए, ताकि यह संस्कृति ऐसे ही चलती रहे और कभी भी विलुप्त न हो।
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।
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10 lines on indian culture in hindi – 10 lines essay, 10 lines on indian culture in hindi language :.
Hello Student, Here in this post We have discussed about Indian Culture in Hindi. Students who want to know a detailed knowledge about Indian Culture, then Here we posted a detailed view about 10 Lines Essay Indian Culture in Hindi. This essay is very simple.
Indian Culture (भारतीय संस्कृति)
1) हमारा देश पूरे विश्व में अपने अनोखी संस्कृति के लिए जाना चाहता है।
2) भारतीय संस्कृति यह प्राचीन काल से चली आ रही है।
4) भारतीयों ने अपनी परंपरा और संस्कृति का जतन किया हुआ है।
6) भारत में विभिन्न संस्कृति तथा परंपराओं के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं।
7) एक दूसरे की संस्कृति तथा परंपराओं का मान सम्मान करते हैं।
8) भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए कई विदेशी भारत आते हैं।
9) भारतीय संस्कृति रोचक तथा प्राचीन है।
Hope above 10 lines on Indian Culture in Hindi will help you to study. For any help regarding education Students please comment us. Here we are always ready to help You.
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भारतीय संस्कृति पर निबंध (Indian Culture Essay In Hindi)
आज हम भारतीय संस्कृति पर निबंध (Essay On Indian Culture In Hindi) लिखेंगे। भारतीय संस्कृति पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
हमारी संस्कृति बहुत पुरानी है और पूरे संसार में हमारे संस्कृति को महान बताया गया है। यहां विभिन्न प्रकार के संस्कृति और परम्पराओ को मानने और निभाने वाले लोग एक साथ प्यार और शान्ति के साथ रहते है।
हमारा देश सभ्य और कोमल स्वभाव के लिए जाना जाता है। हमारे देश को पराधीनता की बेड़ियों से छुड़वाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणो की आहुति दी थी। महात्मा गाँधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, तांत्या टोपे, झांसी की रानी इन सभी ने देश को आज़ाद कराने के लिए अपना जीवन समर्पित किया था।
भारत में रहने वाले लोग पहले संयुक्त परिवारों में रहते थे। आज भी लोग संयुक्त परिवार में रहते है, मगर पहले की तुलना में यह थोड़ा कम हो गया है। लोग आजकल पढ़ाई के लिए और नौकरी के लिए अपने संयुक्त परिवार से अलग रहते है। लेकिन आज भी हमारे देश में संयुक्त परिवार मौजूद है।
देश में विभिन्न धर्मो के लोग एक साथ बुद्ध पूर्णिमा, महावीर जयंती, होली, दिवाली इत्यादि एक जुट होकर मनाते है। स्वतंत्रता दिवस पर सभी धर्मो के लोग एक साथ मिलकर झंडा फहराते है और राष्ट्र गान गाते है।
वह चाहते थे कि देशवासी उनकी संस्कृति को अपना ले। इसकी वजह से भारत में कई लोग आधुनिकता की ओर कदम बढ़ा रहे है और पाश्चात्य संस्कृति को ज़्यादा अहमियत दे रहे है, जो सही नहीं है।
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